अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के ही नहीं बल्कि देश के उन चुनिंदा नेताओं में एक थे जिन्हें सुनने के लिए जनता की भीड़ स्वयं ही उमड़ जाया करती थी । उनके भाषण आज भी अमर है, उनके कहे हुए एक – एक शब्द लोगों को नए उत्साह से भर दिया करते थे । उनका भाषण किसी चुनावी रैली में हो, नेता प्रतिपक्ष के तौर पर हो, संयुक्त राष्ट्र के पटल पर या फिर किसी और जगह, उनके शब्द लोगों का दिल जीत लिया करते थे ।
इमरजेंसी के समय अटल जी के वो शब्द
साल 1975 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी की घोषणा कर दी थी । उसदौरान विपक्षी दलों के नेताओं ने जोर-शोर से इसका विरोध किया था । भारी विरोध के चलते इंदिरा गांधी को झुकना पड़ा और 1977 में उन्होने चुनाव का ऐलान किया गया था । देश में इमरजेंसी खत्म होने पर दिल्ली के रामलीला मैदान में एक महा रैली का आयोजन किया गया था । जहां अटल जी ने अपने शब्द रखे थे ।
लगने लगे थे अटल बिहारी जिंदाबाद के नारे
मंच पर जब अटल बिहारी वाजपेयी पहुंचे और उन्होने बोलना शुरू किया तो मानो पूरा माहौल ही बदल गया । इंदिरा गांधी मुर्दाबाद और अटल बिहारी जिंदाबाद के नारों के बीच उन्होने भीड़ को शांत रहने का इशारा किया । अपने खास अंदाज में वो फिर बाले – ‘बाद मुद्दत मिले हैं दीवाने.’ इतना कहकर वो फिर शांत हो गए । कुछ देर चुप रहकर फिर कहा – ‘कहने सुनने को बहुत हैं अफसाने.’ भीड़ फिर से नारे लगाने लगी । इसके बाद फिर वाजपेयी ने कहा- ‘खुली हवा में जरा सांस तो ले लें, कब तक रहेगी आजादी भला कौन जाने.’
ये तीन लाइनें सब कुछ कह गईं
अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा कही गई ये तीन लाइनें मानों इमरजेंसी खत्म होने पर सब कुछ कह गईं । उन्हें सुनने के लिए मौजूद जनता ने इतने नारे लगाए कि वाजपेयी जी को फिर कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ी । पूरा देश उन्हें सुनना चाहता था, उनके भाषण का अंदाज सबसे निराला था । कुछ सोचकर, ठहराव देकर उनके बातों को कहने का अंदाज लाजवाब था । अटल जी के भाषण, उनकी कविताएं लोग आज भी सुनते हैं । उन्हें आज पूरा देश याद कर रहा है, नमन कर रहा है ।