लखनऊ। 28 जुलाई को रायबरेली के पास उस कार को टक्कर मारी जाती है, जिसमें उन्नाव रेप पीड़िता अपनी चाची, मौसी और वकील के साथ सवार होती है। मामला मीडिया में छाने के बाद न केवल प्रशासनिक अमला हरकत में आता है, बल्कि पीड़िता को न्याय त्वरित गति से सुनिश्चित करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट भी सक्रिय हो जाता है।
हादसे के पॉंचवें दिन यानी 1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट उन्नाव रेप मामले से जुड़े सभी 5 मामलों को दिल्ली ट्रांसफर करने का आदेश देता है। केस की रोजाना सुनवाई करते हुए 45 दिन की डेडलाइन तय करता है। हादसे की पड़ताल एक हफ्ते के भीतर पूरी करने का निर्देश देता है। उत्तर प्रदेश सरकार को पीड़िता के परिजनों को 25 लाख रुपए का मुआवजा देने को भी कहता है।
जिस देश की अदालतों में करीब तीन करोड़ मामले लंबित हो, वहॉं इस तरह की तेजी न्यायिक व्यवस्था में यकीन और गहरा करती है। लेकिन, त्वरित गति से इंसाफ केवल उन्हीं मामलों में मिलता क्यों दिखता है जो मीडिया की सुर्खी बनते हैं? चाहे वह निर्भया का मामला हो या कठुआ का और अब उन्नाव।
देशभर में 30 जून तक बाल दुष्कर्म के डेढ़ लाख से ज्यादा मामले लंबित थे। देश में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में से करीब 12 फीसदी रेप के होते हैं। बीते महीने केन्द्र सरकार ने लोकसभा में बताया गया था कि 2014-16 के बीच हिरासत में दुष्कर्म के 300 से ज्यादा मामले सामने आए थे। बीते साल लोकसभा में सरकार ने एनसीआरबी के आँकड़ों का हवाला देते हुए बताया था कि 2015 में 34,651 और 2016 में 38,947 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए थे। लेकिन, सजा इनमें से एक चौथाई मामलों में ही हो पाती है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट को बाल दुष्कर्म के मामलों की जानकारी देते हुए बताया गया था कि इस प्रकार के मामलों के निपटाने की दर महज नौ फीसदी ही है। और यह हालात पोक्सो कानून लागू होने के सात साल बाद की है। रिपोर्ट के अनुसार देश भर में इस साल एक जनवरी से लेकर 30 जून तक ऐसे 24,212 मामले दर्ज किए गए थे।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की 2014 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर एक घंटे में 4 रेप होता है। ब्यूरो की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बलात्कार के मामले 2015 की तुलना में 2016 में 12.4 फीसदी बढ़े। 2016 में 38,947 बलात्कार के मामले देश में दर्ज हुए। इसी ब्यूरो के आँकड़े बताते हैं कि साल 2016 में देश की विभिन्न अदालतों में चल रहे बलात्कार के 1,52,165 नए-पुराने मामलों में केवल 25 का निपटारा किया जा सका, जबकि उस साल रेप के 38,947 नए मामले दर्ज किए गए थे।
देश की राजधानी दिल्ली में ही साल 2011 से 2016 के बीच महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामलों में 277 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। दिल्ली में साल 2011 में जहां इस तरह के 572 मामले दर्ज किए गए थे, वहीं साल 2016 में यह आंकड़ा 2155 रहा। यहाँ तक कि निर्भया कांड के बाद दिल्ली में दुष्कर्म के मामलों में 132 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी।
महिला सुरक्षा हर कानून और दावे का मजाक उड़ाते ये आँकड़े केवल रेप के मामलों के हैं, जो दुनिया भर में सबसे कम रिपोर्ट होने वाला अपराध है। ज्यादातर मामलों में पीड़िता पुलिस तक पहुँचने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाती। यौन उत्पीड़न के खिलाफ काम करने वाली अमेरिकी संस्था रेप, असॉल्ट एंड इन्सेस्ट नेशनल नेटवर्क के अनुसार अमेरिका में होने वाले हर एक हजार यौन अपराधों में केवल 310 मामले पुलिस को सामने आते हैं। इसमें से भी केवल 6 मामलों में अपराधी को सजा हो पाती है। अब इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत जैसे देश में इस तरह के कितने मामले रिपोर्ट होते होंगे।
इन आँकड़ों से यह भी पता चलता है कि कानून भले कितने भी कड़े कर दिए जाए जब तक त्वरित गति से इंसाफ मिलता नहीं मिलेगा हालात नहीं बदलेंगे। और हर मामला आपका भी इतना खून नहीं खौलाता है कि आप पोस्टर-बैनर और कैंडल लेकर सड़क पर उतर जाएँ!