नई दिल्ली। कांग्रेस की दिग्गज नेता और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का कल निधन हो गया और आज दिल्ली में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. पिछले साल उन्होंने जयपुर के लिटरेचर फेस्टिवल में अपनी आत्मकथा का विमोचन किया था. ‘सिटीजन दिल्ली- माई टाइम, माई लाइफ़’ नाम की इस किताब में शीला दीक्षित के निजी जीवन और राजनीतिक सफर से जुड़े कई रोचक पहलुओं का जिक्र है. शीला ने इस किताब में लिखा है कि उनके पति विनोद दीक्षित ने उन्हें डीटीसी में प्रपोज किया था.
शीला कपूर से शीला दीक्षित बनने की कहानी
इस किताब में शीला कपूर से शीला दीक्षित बनने की रोचक घटना का जिक्र है. पिछले साल इस किताब के बारे में बातचीत करते हुए दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा था कि उस वक्त मिरांडा हाउस कॉलेज की अपनी बस नहीं थी. सिर्फ एक बस थी जो सेंट स्टीफेंस कॉलेज और मिरांडा हाउस के बीच चलती थी. इसी बस में विनोद दीक्षित ने उन्हें प्रपोज किया और बाद में दोनों की शादी हुई. इस तरह से शीला कपूर, शीला दीक्षित बन गईं. विनोद दीक्षित के पिता उमाशंकर दीक्षित कांग्रेस के बड़े नेता थे.
शीला दीक्षित की राजनीति में एंट्री
शीला दीक्षित को राजनीति से लगाव था. शादी के बाद उनके ससुर उमाशंकर दीक्षित ने उनका समर्थन किया. धीरे-धीरे उनका कद कांग्रेस पार्टी में बढ़ता चला गया. इस किताब में शीला दीक्षित ने अपने राजनीतिक जीवन से जुड़े कई वाकिये का जिक्र किया है. उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान दिल्ली की स्थिति, मेट्रो, बिजली और कॉमनवेल्थ गेम्स से जुड़ी बातों के बारे में लिखा है. शीला दीक्षित ने कहा कि मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने दिल्ली को हरा-भरा बनाने की कोशिश की.
शीला दीक्षित ने कहा कि दिल्ली सरकार के पास दूसरे राज्यों की तरह अधिकार नहीं थे. ज़मीन,पुलिस और सब कुछ केंद्र के पास था. ऐसे में लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरना एक मुश्किल काम था. बिजली का हाल ख़राब था सिर्फ़ चार घंटे मिलती थी. दिल्ली मेट्रो के बारे में शीला दीक्षित ने कहा कि अटल बिहारी वाजयेपी जी के वक़्त दिल्ली में मेट्रो शुरू हुई और उन्होंने पूरा साथ और सम्मान दिया. किताब में मायावती का भी जिक्र है. दरअसल शीला दीक्षित और मायावती की कभी मुलाकात नहीं हुई. लेकिन शीला दीक्षित ने मायावती को एक चिट्ठी लिखी, ”दिल्ली प्यासी है.” इस चिट्ठी के बाद मायावती ने एक सप्ताह के भीतर जमीन दे दी.” लेकिन दिल्ली की मुख्यमंत्री का मानना है कि अब राजनीति में आपसी सम्मान की कमी दिखती है.