दयानंद पांडेय
हमारे कुछ मुस्लिम दोस्त हैं जो कुतर्क के ढेर सारे अमरुद बेहिसाब खाते जा रहे हैं । उन को गुमान बहुत है कि मुसलमानों ने इस देश को बहुत कुछ दिया है । और इस अंदाज़ में कह रहे हैं गोया वह अभी भी अरब में रह रहे हों , भारत में नहीं । जैसे मुगलों ने भारत को भाई चारा नहीं , कोई बख्शीश दी हो । आदि-आदि । गोया मुगल न आए होते तो भारत यतीम ही बना रहता । मुगलों ने भारत आ कर भारत को सोने की चिड़िया बना दिया वगैरह कुतर्क और तथ्यों से विपरीत बातें उन की जुबान में भरी पड़ी हैं ।
उन से कहना चाहता हूं कि पहले तो अपने को भारतीय समझ लीजिए । फिर इतिहास को ज़रा पलट लीजिए । पलटेंगे तो जानेंगे कि भारत सोने की चिड़िया मुगलों के आने के पहले था । ब्रिटिशर्स यहां व्यापारी बन कर आए थे लेकिन मुगल तो सीधे-सीध आक्रमणकारी बन कर आए थे । सोने की चिड़िया को लूट लिया । जाने कितने मंदिर लूटे और तोड़े बारंबार । समृद्धि , सुख-चैन लूट लिया । उन का आक्रमणकारी और लुटेरा रुप अभी भी उन से विदा नहीं हुआ है। मुसलमान अभी भी अपने को यहां का नागरिक नहीं समझते । भले किसी गैराज में कार धोते हों , मैकेनिक हों , किसी ट्रक पर खलासी हों , कहीं चाय बेचते हों । कहीं अफसर हों , इंजीनियर हों , अध्यापक हों या कुछ और सही पर समझते हैं अपने को रुलर ही । राहत इंदौरी जैसे शायर इसी गुमान में लिखते हैं , कब्रों की जमीनें दे कर हमें मत बहलायिये / राजधानी दी थी राजधानी चाहिए । ‘ हां रहन सहन भी , खान पान में भी योगदान ज़रूर है । रोटियां कई तरह की ले आए। मसाला आदि लाए , साथ में गाय का मांस खाने की ज़िद भी लाए । औरतों को खेती समझने की समझ , तीन तलाक का कुतर्क आदि ले आए। मज़हबी झगड़ा ले आए । जबरिया धर्म परिवर्तन का फसाद ले आए। भाई को मार कर , पिता को कैद कर राज करने की तरकीब ले आए।
अभी भी पूरी दुनिया को जहन्नुम के एटम बम पर बिठा दिया है , मनुष्यता को सलीब पर टांग दिया है । फिर भी कुतर्क भरा गुमान है कि भारत को बहुत कुछ दिया है तो आप की इस खुशफहमी का मैं तो क्या कोई भी कुछ नहीं कर सकता । यह गुमान आप को मुबारक । लेकिन आप यह तय ज़रूर कर लीजिए कि आप की यह चिढ़ सिर्फ़ संघियों , भाजपाईयों और गांधी के हत्यारों से ही है या समूची मनुष्यता से है ? आप के रोल माडल आखिर बिन लादेन , बगदादी , बुरहान वानी या ज़ाकिर नाईक जैसे हरामखोर आतंकवादी ही क्यों हो गए हैं ? उन के लिए आप छाती क्यों पीट रहे हैं भला ? सीमांत गांधी , ज़ाकिर हुसेन , ए पी जे अबुल कलाम या वीर हामिद जैसे नायक लोग कहां बिला गए आप की जिंदगी से । क्यों बिला गए ? और कि आप के भीतर से कोई बड़ा राजनीतिक क्यों नहीं निकल पाया ? आख़िर कभी कांग्रेस , कभी मुलायम , कभी लालू आदि के अर्दली और मिरासी बन कर ही मुस्लिम राजनीति संभव क्यों बन पा रही है ? अभी भी चेत जाईए , इंसान बन लीजिए पहले फिर मुसलमान भी बन लीजिएगा । शांति कायम रहेगी तभी हम आप इस तरह विमर्श कर सकेंगे । सहमति या असहमति जता सकेंगे एक दूसरे से । बम फोड़ कर , पत्थर फोड़ कर , किसी का गला रेत कर नहीं , किसी मासूम पर ट्रक चढ़ा कर नहीं ।
अगर मैं यह कहता हूं कि देश के मुसलमान सिर्फ़ मुसलमान नहीं देश के समझदार नागरिक बन कर रहना सीखें तो इस में नासमझी कहां से आ गई भला ? ग़लत क्या है भाई ? आख़िर देश में और भी अल्पसंख्यक समुदाय के लोग हैं । सिख हैं , ईसाई हैं , बौद्ध हैं , जैन हैं , पारसी हैं । आख़िर इन लोगों को कोई मुश्किल क्यों नहीं होती ? इस लिए कि यह लोग देश में समझदार नागरिक की तरह मुख्य धारा में रहते हैं। न इन को किसी से तकलीफ होती है , न इन से किसी को तकलीफ होती है । हमारे मुस्लिम दोस्तों को भी मुख्य धारा में रहना , जीना सीख लेना चाहिए ।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)