पूर्व रॉ अधिकारी ने भारत के उप-राष्ट्रपति रहे हामिद अंसारी पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। पत्रकार चिरंजीवी भट ने पूर्व रॉ अधिकारी एनके सूद से बातचीत की, जिसमें उन्होंने हामिद अंसारी के क़रीबी द्वारा वैज्ञानिक नाम्बी नारायणन को बदनाम करने और उनका करियर तबाह करने की बात का खुलासा किया। पूर्व रॉ अधिकारी ने पत्रकार चिरंजीवी भट से बात करते हुए कहा:
“रतन सहगल नामक व्यक्ति हामिद अंसारी का सहयोगी रहा है। आपने नाम्बी नारायणन का नाम ज़रूर सुना होगा। उन पर जासूसी का आरोप लगा था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनके ख़िलाफ़ लगे सारे आरोपों को निराधार पाया था। वे निर्दोष बरी हुए। लेकिन, किसी को नहीं पता है कि उनके ख़िलाफ़ साज़िश किसने रची? ये सब रतन सहगल ने किया। उसने ही नाम्बी नारायणन को फँसाने के लिए जासूसी के आरोपों का जाल बिछाया। ऐसा उसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि बिगाड़ने के लिए किया। रतन जब आईबी में था तब उसे अमेरिकन एजेंसी सीआईए के लिए जासूसी करते हुए धरा जा चुका था। अब वह सुखपूर्वक अमेरिका में जीवन गुजार रहा है। वह पूर्व-राष्ट्रपति अंसारी का क़रीबी है और हमें डराया करता था। वह हमें निर्देश दिया करता था।”
आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी यदि मैं आपको बताऊँ कि दशकों पहले, हमारे पास एक ऐसा असाधारण वैज्ञानिक था, जो स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन पर काम कर रहा था? साथ ही यह कि उन्हें नौकरी से ‘देशद्रोही’ जैसे आरोप लगाकर निकाल दिया गया और हमारी तत्कालीन ‘सेक्युलर’ सरकार द्वारा उनका जीवन बर्बाद कर दिया गया? क्या आप उन लोगों को कभी माफ़ कर पाएंगे?
मिलिए इसरो वैज्ञानिक नम्बी नारायण से, जिन्हें 25 जनवरी 2019 को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
पीएसएलवी (PSLV) को याद करिए, जिसने वर्ष 2014 में मंगलयान को संचालित किया था और मंगल ग्रह पर भारतीय ध्वज लहराया था। पीएसएलवी, जिसने वर्ष 2008 में चंद्रयान को संचालित किया और इस बात की पुष्टि की कि चंद्रमा पर निश्चित रूप से पानी की बर्फ है।
जनवरी 5, 2014 को भारत ने अंतरिक्ष में लम्बी छलांग लगाकर नया इतिहास रचा था। स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के बूते रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजने का परीक्षण 100% ख़रा उतरा था। इस लम्बी छलांग के पीछे असल में कौन था? लेकिन उस दौरान पूरी खबरों में कहीं भी उस वैज्ञानिक का उल्लेख तक नहीं था। उस वैज्ञानिक का नाम है प्रोफैसर नम्बी नारायणन।
सबसे पहले 1970 में ‘तरल ईंधन रॉकेट’ तकनीक लाने वाले वैज्ञानिक रहे नम्बी नारायणन 1994 में इसरो में क्रायोजेनिक विभाग के वरिष्ठ अधिकारी थे। अफ़सोस की बात है कि उन्हें सत्ता और सियासत के षड्यंत्र का शिकार बनाया गया। जिस व्यक्ति को राष्ट्रीय अलंकरण देकर सम्मानित किया जाना चाहिए था, उसे ही जेल की सलाखों के पीछे बन्द कर दिया गया। उन्हें देश का गद्दार करार दिया गया। हमारे देश की विडम्बना है कि जो लोग देश के लिए कुछ कर गुजरने का हौंसला रखते हैं, उनको किसी न किसी तरह से हतोत्साहित कर रोक दिया जाता है।
नम्बी नारायणन और उनके साथी डी. शशिकुमार को वर्ष 1994 में केरल पुलिस ने जासूसी और भारत की रॉकेट प्रौद्योगिकी शत्रु देशों को बेचने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था। तब मीडिया ने इन ख़बरों को बहुत उछाला था। मीडिया ने बिना जाँचे-परखे पुलिस की इस ‘थ्योरी’ पर विश्वास करके उन्हें राष्ट्रद्रोही के रूप में प्रस्तुत किया था। पुलिस ने इसे सैक्स जासूसी स्कैंडल की तरह पेश किया था। सीआईए ने मालदीव की 2 ऐसी महिलाओं को तैयार किया जिनके पास ऐसे रहस्य थे, जिनकी जानकारी न पुलिस को थी, न मीडिया को।
PSLV ने हमें हमेशा गौरवान्वित किया है। पीएसएलवी रॉकेट स्वदेशी “विकास इंजन” पर चलता है और नम्बी नारायणन ने इसे बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
1990 के दशक में, नम्बी नारायणन भारत के शीर्ष वैज्ञानिकों में से एक थे, जो स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन पर काम कर रहे थे। इससे पहले, भारत ने रूस से इस तकनीक को खरीदने की कोशिश की थी, लेकिन अमेरिकियों ने पूरी लड़ाई लड़ी और इसे रोक दिया। स्वाभाविक है कि जिन लोगों के पास यह तकनीक होगी, वे अन्य देशों से ईर्ष्या के कारण इस तकनीक की रक्षा करेंगे।
अमेरिकी दबाव में रूस ने क्रायोजेनिक इंजन देने से इन्कार कर दिया था। तब नम्बी नारायणन ने ही सरकार को भरोसा दिलाया था कि वह और उनकी टीम देसी क्रायोजेनिक इंजन बनाकर दिखाएँगे। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को ध्वस्त करने के लिए अमेरिका ने साजिश रची और केरल की वामपंथी सरकार उसका हथियार बन गई।
हैरानी की बात तो यह है कि केन्द्र में तत्कालीन कॉन्ग्रेस सरकार की भूमिका भी संदिग्ध रही थी, जिसने इतने बड़े वैज्ञानिक के ख़िलाफ़ साजिश पर ख़ामोशी अख्तियार कर ली थी। मीडिया में ऐसी रिपोर्ट वर्णित थी कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए भारत में ऊपर से नीचे तक के नेताओं और अफ़सरों को मोटी रकम पहुँचाती थी।
फिर, यह सब हुआ।
वर्ष 1994 में, नम्बी नारायणन पर अचानक जासूसी और विदेशी एजेंटों को रॉकेट सम्बंधित संवेदनशील जानकारी लीक करने का आरोप लगाया गया था। उन्हें गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया गया, इसके साथ ही उनका करियर ख़त्म हो गया।
एक दिन सुबह अचानक ख़बर आनी शुरू हुई कि मालदीव की दो सुंदरियों मरियम रशीदा और फव्जिया हसन ने भारत के दो वैज्ञानिकों को हनी ट्रैप में फँसा लिया है। ज़िस्म और कुछ लाख डॉलर के बदले में इन वैज्ञानिकों ने भारत के क्रायोजेनिक इंजन का प्रोग्राम बेच डाला था!
मलयालम मीडिया से शुरू हुई इस ख़बर को राष्ट्रीय मीडिया में भी जगह मिली। फिर बी ग्रेड की फिल्मों जैसा कथानक लिखने वालों की ख़ोज हुई और मालदीव की औरतों, वैज्ञानिकों और मुख्यमंत्री के क़रीबी कहे जाने वाले बड़े पुलिस अधिकारियों की मसालेदार कहानियाँ गढ़ी गयीं। थोड़े ही दिन में लोगों को भी लगने लगा कि इसरो के इस जासूसी काण्ड में मुख्यमंत्री की भी मिली भगत है। आईजी रमन श्रीवास्तव और करुणाकरण पर शिकंजा कसने लगा।
लगातार अख़बारों में आती ख़बरों के मद्देनजर हाई कोर्ट ने मामले का संज्ञान लिया और ओमन चंडी ने इसी वक़्त इस्तीफ़ा दे दिया। आख़िरकार करुणाकरण को भी इस्तीफ़ा देना पड़ा और एंटनी मुख्यमंत्री बने। उन्हें पता था कि मामला तो कुछ है ही नहीं इसलिए केस सीबीआई को सौंप दिया गया।
नारायणन और शशि कुमार की घनघोर भर्त्सना हुई। ऑटो रिक्शा वाले तक नारायणन की पत्नी को पहचानकर बिठाने से इनकार करने लगे। यहाँ तक कि उनके बच्चों को भी जासूस-गद्दार का बच्चा बताया गया। सीबीआई ने जाँच शुरू की तो पहले ही हफ़्ते में पता चल गया कि शुरूआती सबूत ही फ़र्ज़ी हैं और इसमें कोई मुक़दमा नहीं बनता। फिर भी, मीडिया में वैज्ञानिकों के घर से काफ़ी नगद मिलने की ख़बरें उड़ाई गयी जो कि सीबीआई को कभी मिली ही नहीं थी।
सीबीआई ने अदालत में कहा कि ये केरल पुलिस की काफ़ी सोची समझी साज़िश थी। केरल पुलिस के सीबी मैथ्यूज, विजयन और के के जोशुआ के अलावा आईबी के आर बी श्रीकुमार पर मुक़दमा चलाने की सिफ़ारिश सीबीआई ने कर दी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी अभियुक्तों को रिहा किया और केरल सरकार को पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई करने कहा।