दयानंद पांडेय
बरेली की साक्षी मिश्रा जैसी लड़कियां भारतीय समाज पर कलंक हैं। कोढ़ हैं। ठीक है कि आप बालिग़ हैं , क़ानून आप को अधिकार भी देता है कि जिस से चाहें शादी करें , जिस के साथ चाहें रहें और सोएं । लेकिन क़ानून यह अधिकार तो नहीं ही देता कि आप किसी के जाल में , रैकेट में फंस कर बेबात अपने पिता और परिवार की सार्वजनिक छीछालेदर करती फिरें। निरंतर बेबुनियाद आरोपों की झड़ी लगाती रहें। आप की अपनी निजी जिंदगी है , आप रं$%%@@ बन जाइए , रोकता कौन है। कोई फर्क भी नहीं पड़ता। लेकिन पिता का राजनीतिक , सामाजिक और पारिवारिक जीवन छिन्न-भिन्न करने का अधिकार किस क़ानून ने दे दिया ?
पिता आप की इस बेहूदी क्रांतिकारी शादी का वेलकम करे ही , कानून की किस किताब में लिखा है ? आप की ब्लैकमेलिंग में फंस कर आप की इस बेहूदगी को पिता स्वीकृति दे ही दे , किस क़ानून की किताब में लिखा है । पिता कह रहा है कि तुम खुश रहो और तुम कह रही कि नहीं मुझे जैसे भी हो , मेरे पाप को , मेरे अपराध को स्वीकार करो ही । मुझ से दस साल बड़े मेरे बेरोजगार और फ्राड पति की पूजा करो ही। अजब गुंडई है। टी आर पी बटोरने वाले , कुत्ता दौड़ में हांफ रहे , कारोबारी चैनलों के कंधे पर बैठ कर पिता के कंधों को कमज़ोर करना , वह कंधा , जिस पर बैठ कर बड़ी हुई , खेली , पढ़ी , अपनी अय्यासी के लिए उस कंधे को कमज़ोर करना कोई क़ानून की कताब नहीं सिखाती।
यह तुम्हारा तथाकथित पति कमीना और ##$$@@@ अजितेश बरेली के मुहल्ले में ठाकुर साहब बन कर रहता था , न्यूज़ चैनलों पर वह पूरी बेशर्मी से दलित बन गया है। बेरोजगार , नशेबाज और औरतबाज तुम से दस बरस बड़ा अजितेश तुम्हारे ही साथ नहीं इस सभी समाज के साथ भी खेल गया है। इस तरह दलित कार्ड और बालिग होने की यह आज़ादी और इस का दुरूपयोग असंख्य बेटियों की आज़ादी छीन ले गया है , साक्षी मिश्रा यह तुम क्या जानो ! तुम्हारी जैसी कमीनी और चरित्रहीन लड़कियां ही गर्भ में बेटियों को मार डालने का व्यूह रचती हैं। बहादुरी तुम्हारी तब होती जब एक बार पिता से या परिवार से शादी के पहले इस शादी के लिए चर्चा करती।
लेकिन नहीं तुम कायरों की तरह उस कमीने और नामर्द अजितेश के साथ भाग कर शादी का एक फर्जी सर्टिफिकेट बनवा कर अपने परिवार , समाज और पिता की पगड़ी उछाल कर मूर्ख मीडिया की बैसाखी पर खड़ी बेहूदगी की मीनार बनाती फ़ुटबाल की तरह उछल रही हो। अपनी अय्याशी में ख़ूब उछलो लेकिन बाक़ी बेटियों का रास्ता मत बंद करो। बहुत मुश्किल से बेटियों को पढ़ने-लिखने और अपनी मंज़िल तय करने की आज़ादी मिल पाई है। अपनी अय्याशी में बेटियों की यह तरक्की , यह आज़ादी मत छीनो। अय्याशी अपनी जारी रखो लेकिन अपनी औकात में रहो साक्षी मिश्रा। यह कमीना और ##@@! अजितेश तुम्हारे लिए अंधी सुरंग है , बेहिसाब दलदल है। जिस से तुम कभी निकल नहीं पाओगी। और अगर तुम इतनी राईट टाइम हो तो भोपाल की उस दलित लड़की का क्या कुसूर था , जिस से सगाई के बाद भी इस कमीने ने विवाह नहीं किया। अपनी कमीनगी में ही सही , अपनी चरित्रहीनता में सही , कभी पूछा तो होता , इस हरामखोर अजितेश से । जो मुहल्ले में ठाकुर साहब बन कर रहता था , न्यूज़ चैनलों पर बड़े ठाट से दलित बन गया है। धिक्कार है साक्षी मिश्रा , तुम्हारी आत्मा मर गई है। अपनी अय्याशी को जस्टीफाई करने के लिए सिर्फ़ एक लाचार और बेबस पिता से ही सवाल पूछने की हैसियत रह गई है तुम्हारी ।
(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)