- चंद्रयान-2 को पिछले साल अक्टूबर में लॉन्च किया जाना था, लेकिन अब तक चार बार मिशन की तारीख बदली जा चुकी है
- भारत के दूसरे मून मिशन में इस्तेमाल होने वाले रॉकेट और अन्य उपकरणों की लागत 978 करोड़ रुपए
- इजराइल ने बीते फरवरी में मून मिशन भेजा था, उसकी लागत 1400 करोड़ रुपए थी
नई दिल्ली। चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग टाल दी गई है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने देर रात एक ट्वीट कर इसका ऐलान किया। इसरो के एसोसिएट डायरेक्टर (पब्लिक रिलेशन) बीआर गुरुप्रसाद ने बताया कि लॉन्च से 56 मिनट पहले ही लॉन्चिंग व्हीकल सिस्टम में तकनीकी खराबी पाई गई। एहतियात के तौर पर सोमवार तड़के होने वाले चंद्रयान के प्रक्षेपण को आगे के लिए टाल दिया गया। जल्द ही लॉन्चिंग की नई तारीखों का ऐलान किया जाएगा।
इसरो चंद्रयान-2 को पहले अक्टूबर 2018 में लॉन्च करने वाला था। बाद में इसकी तारीख बढ़ाकर 3 जनवरी और फिर 31 जनवरी कर दी गई। लेकिन कुछ अन्य कारणों से इसे 15 जुलाई तक टाल दिया गया। इस दौरान बदलावों की वजह से चंद्रयान-2 का भार भी पहले से बढ़ गया। ऐसे में जीएसएलवी मार्क-3 में भी कुछ बदलाव किए गए थे।
चंद्रयान-2 मिशन क्या है? यह चंद्रयान-1 से कितना अलग है?
अब इसरो चंद्रयान-2 के लाॅन्चिंग की नई तारीख तय करेगा। इसके बाद श्रीहरिकोटा के सतीश धवन सेंटर से इसे भारत के सबसे ताकतवर जीएसएलवी मार्क-III रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा। चंद्रयान-2 वास्तव में चंद्रयान-1 मिशन का ही नया संस्करण है। इसमें ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) शामिल हैं। चंद्रयान-1 में सिर्फ ऑर्बिटर था, जो चंद्रमा की कक्षा में घूमता था। चंद्रयान-2 के जरिए भारत पहली बार चांद की सतह पर लैंडर उतारेगा। यह लैंडिंग चांद के दक्षिणी ध्रुव पर होगी। इसके साथ ही भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर यान उतारने वाला पहला देश बन जाएगा।
दूसरे देशों द्वारा भेेजे गए मिशन से कितना सस्ता है चंद्रयान-2?
यान |
लागत |
चंद्रयान-2 |
978 करोड़ रुपए |
बेरशीट (इजराइल) |
1400 करोड़ रुपए |
चांग’ई-4 (चीन) |
1200 करोड़ |
*इजराइल ने फरवरी 2019 में बेरशीट लॉन्च किया था, जो अप्रैल में लैंडिंग के वक्त क्रैश हो गया। चीन ने 7 दिसंबर 2018 को चांग’ई-4 लॉन्च किया था, जिसने 3 जनवरी को चांद की सतह पर सफल लैंडिंग की।
मिशन लॉन्च होने के बाद चंद्रयान-2 को पृथ्वी की कक्षा में जाने में कितना समय लगेगा?
मिशन को जीएसएलवी मार्क-III से भेजा जाएगा। रॉकेट को पृथ्वी की कक्षा में पहुंचने में 16 मिनट का समय लगेगा। इसे चांद की सतह तक पहुंचने में 1,296 घंटे यानी 54 दिन का समय लगेगा।
चंद्रयान-2 के पृथ्वी की कक्षा में जाने के बाद क्या होगा?
चंद्रयान-2 सोलह दिनों तक पृथ्वी की कक्षा के 5 चक्कर पूरे करेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर यान को पृथ्वी से सीधे चांद की तरफ भेजते हैं, तो इससे ईंधन बहुत खर्च होगा। चंद्रयान-2 को सीधे चांद की तरफ भेजने के लिए 1 सेकंड में 11.2 किमी की रफ्तार चाहिए, लेकिन जीएसएलवी मार्क-III इस रफ्तार से उड़ान नहीं भर सकता। इसी वजह से यान को पृथ्वी की कक्षा के 5 चक्कर लगाने पड़ेंगे ताकि वह धीरे-धीरे गुरुत्वाकर्षण से बाहर आए। यान अंडाकार (इलिप्टिकल) चक्कर लगाएगा। जब यह पृथ्वी के सबसे पास होगा, तब ऑर्बिटर और धरती के बीच 170 किमी की दूरी होगी। जब यह सबसे दूर होगा तो पृथ्वी और ऑर्बिटर के बीच 40,400 किमी की दूरी होगी। हर चक्कर के साथ पृथ्वी से चंद्रयान-2 की दूरी बढ़ती जाएगी।
चंद्रयान-2 के पृथ्वी की कक्षा से बाहर जाने के बाद क्या होगा?
पृथ्वी की कक्षा के 5 चक्कर पूरे करने के बाद चंद्रमा की कक्षा तक पहुंचने में इसे 5 दिन का वक्त लगेगा।
क्या ऑर्बिटर चंद्रमा के चक्कर भी लगाएगा?
ऑर्बिटर चंद्रमा की कक्षा में पहुंचकर 4 चक्कर लगाएगा। इसका कारण यह है कि पहली बार कोई देश दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर उतारेगा। इसके लिए इसरो के ऑर्बिटर को चंद्रमा की सतह की निगरानी करनी होगी ताकि सुरक्षित लैंडिंग हो सके।
ऑर्बिटर से लैंडर कैसे अलग होगा? उसे सतह तक पहुंचने में कितना समय लगेगा?
चंद्रमा की कक्षा में भी ऑर्बिटर पहले अंडाकार चक्कर लगाएगा। इसके बाद इसे सर्कुलर ऑर्बिट (गोलाकार) में लाया जाएगा। जब ऑर्बिटर चंद्रमा की सतह से 100 किमी ऊपर होगा, तभी लैंडर उससे अलग हो जाएगा। इसके बाद लैंडर जब चंद्रमा की सतह से 30 किमी ऊपर होगा, तब उसकी गति धीमी होती चली जाएगी ताकि सॉफ्ट लैंडिंग हो सके। लैंडर को चंद्रमा की सतह तक पहुंचने में करीब 4 दिन का वक्त लगेगा।
लैंडर से रोवर को निकालने में कितना समय लगेगा?
लैंडर (विक्रम) के चांद की सतह पर उतरने के बाद उसमें से रोवर (प्रज्ञान) को निकालने में 4 घंटे का समय लगेगा। क्योंकि रोवर 1 सेकंड में सिर्फ 1 सेमी की दूरी तय कर सकता है। मिशन लॉन्च होने के बाद लैंडर को चांद की सतह पर उतरने में 54 दिन का समय लगेगा।
ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर क्या काम करेंगे?
चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद ऑर्बिटर एक साल तक काम करेगा। इसका मुख्य उद्देश्य पृथ्वी और लैंडर के बीच कम्युनिकेशन करना है। इसके साथ ही ऑर्बिटर चांद की सतह का नक्शा तैयार करेगा, ताकि चांद के अस्तित्व और विकास का पता लगाया जा सके। वहीं, लैंडर और रोवर चांद पर एक दिन (पृथ्वी के 14 दिन के बराबर) काम करेंगे। लैंडर यह जांचेगा कि चांद पर भूकंप आते हैं या नहीं। जबकि, रोवर चांद की सतह पर खनिज तत्वों की मौजूदगी का पता लगाएगा।