आशीष नौटियाल
दिल्ली में दुर्गा मंदिर में हुई तोड़-फोड़ के विरोध में देहरादून में हिन्दू संगठनों की अगुवाई में आम लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। लेकिन देहरादून में हिन्दू संगठनों की शांतिपूर्ण रैली में मुस्लिम समाज के लोगों द्वारा अराजकता फैलाए जाने के बाद जमकर मारपीट हुई और इसमें कई लोग घायल हो गए। देहरादून में इनामुल्ला बिल्डिंग के पास मुस्लिम समुदाय के कुछ युवा इस रैली से भड़क गए और उन्होंने भीड़ की शक्ल में रैली कर रहे लोगों की पिटाई शुरू कर दी। इसके बाद हिंदूवादी कार्यकर्ताओं को जब इस घटना की सूचना मिली तो वो भी बिल्डिंग की तरफ बढ़ने लगे, जिन्हें पुलिस ने बलपूर्वक रोक दिया। इस कारण विवाद बढ़ता गया।
इस विवाद को लेकर पूरे दिन तनाव की स्थिति बनी रही क्योंकि मुस्लिम समाज द्वारा उत्तेजक नारे भी लगाए गए, जिसके जवाब में हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने आपत्ति जताई। इनामुल्ला बिल्डिंग के पास हिन्दू सगठनों के युवकों की स्थानीय मुस्लिम युवकों द्वारा पिटाई की गई। हिन्दू संगठनों द्वारा आयोजित इस शांतिपूर्ण रैली का नाम ‘प्रतिरोध रैली’ रखा गया था। इसी रैली में मुस्लिमों ने ‘अल्लाहु अकबर’ के नारे लगा कर बड़ों से लेकर बच्चों तक पर हमले किए। हिंसा करने के अलावा उत्तेजक नारे लगा कर हिन्दू कार्यकर्ताओं को भड़काने की कोशिश की गई।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि यहाँ पुलिस ने उल्टा पीड़ित पक्ष अर्थात हिन्दुओं पर ही कार्रवाई शुरू कर दी। नीचे संलग्न की गई कुछ वीडियो में आप इस घटना के बारे में विस्तृत तरीके से समझ सकते हैं। घटना को 2 दिन हो गए लेकिन कोई भी इस बारे में कुछ भी साफ-साफ़ बोलने को तैयार नहीं है क्योंकि वे अभी भी डरे हुए हैं। इस बारे में अधिक जानकारी देते हुए सामाजिक कार्यकर्ता रोहित मौर्य ने हमसे बात करते हुए कहा:
“5 जुलाई को जिस प्रकार से हिन्दू संगठनों द्वारा एक प्रतिकार रैली का आयोजन किया गया और भारी संख्या में लोग परेड ग्राउंड में इकट्ठे होने जा रहे थे, तब मुस्लिम समुदाय के लोगों ने भारी संख्या में धारदार हथियारों एवं लाठी-डंडों से लोगों पर हमला कर दिया और क्षेत्र की आबो-हवा को बिगाड़ने का प्रयास किया। जिस तरह से दिल्ली में दुर्गा मंदिर तोड़ा गया और उत्तराखंड में मुस्लिमों द्वारा एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई, उसके विरोध में हमने रैली निकाली थी।”
“यहाँ पर डर का माहौल उत्पन्न हो गया है। एक मौलवी काजी रईस ने यह बयान दिया है कि अगर यहाँ मुसलमानों को फ्री कर दें तो वो पूरे देश में कत्लेआम मचा सकते हैं, हम उसी का विरोध कर रहे थे। भगवा रंग को देख कर हमारे कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमला किया गया। इसमें पुलिस का भी दोष है, उनकी गलती सबसे बड़ी है। अनुमति होने के बावजूद हमें रोका गया। पुलिस ने ही झड़प कराई, इसमें उनका ही सारा रोल है। इनामुल्ला बिल्डिंग के पास छोटे-छोटे बच्चों तक पर भी हमला किया गया, वो भी सिर्फ़ इसीलिए क्योंकि उनके हाथों में भगवा झंडा था।”
“एक सोची-समझी साजिश होने के बावजूद पुलिस ने उन्हें रोकने की बजाय हमें रोकने में ताक़त लगा दी। क्या पुलिस इस देश को एक मुस्लिम राष्ट्र बनाना चाहती है? वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि पेचकश, आरी और चाकू जैसे हथियारों से हमला किया गया। बच्चों तक को नहीं बख़्शा गया। यह मुस्लिम बहुत क्षेत्र है और यहाँ ऐसी घटनाएँ होती रही हैं। पहाड़ी लोग सीधे-सादे होते हैं और देवभूमि में लैंड-जिहाद चलाया जा रहा है। क़ानूनी अनुमति न होने के बावजूद ये ज़मीन पर कब्ज़ा कर रहे हैं।”
“एक कहावत है- जब सैंया भए कोतवाल, तब डर काहे का। यहाँ हिन्दू डरे हुए हैं और सरकारें कुछ नहीं कर रही हैं। पुलिस ने कमज़ोर व पीड़ित हिन्दुओं को जेल में डालने की कोशिश की है और मुस्लिमों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। पुलिस ने इस मामले में भी कोई गिरफ़्तारी नहीं की है। वे मुस्लिमों के सामने झुक गए हैं। तभी तो भड़काऊ बयान देने के बावजूद मौलवी को जेल नहीं भेजा गया। पुलिस उल्टा हमें ही डरा रही है।”
“पुलिस ने हमें डीएम के पास जाकर ज्ञापन देने की अनुमति भी दे दी थी लेकिन फिर पुलिस ने हमें रोकने की भी कोशिश की, वो भी बैरिकेडिंग लगा कर। यानी हमें रैली करने की अनुमति भी दी गई और उल्टा मुक़दमे भी हम पर ही दर्ज किए गए। सिटी एसपी ने सैकड़ों लोगों के बीच हमें अनुमति देने की बात कही थी लेकिन फिर भी हमें रोकने का प्रयास किया गया। फिर भी किसी तरह हम जिलाधिकारी को ज्ञापन देने में कामयाब रहे।”
वीडियो में आप देख सकते हैं कि कैसे मुस्लिम समुदाय के लोग हिन्दुओं पर हमले कर रहे हैं, पत्थरबाज़ी की जा रही है और कई तरह के भड़काऊ नारे लगाए जा रहे है। हमारा सवाल है कि स्थानीय लोगों में इतना भय क्यों व्याप्त है कि वे अभी तक इस घटना के बारे में कुछ भी बोलने से हिचक रहे हैं? क्या मुस्लिम समुदाय की बहुलता और उनको मिले पुलिस के संरक्षण (जैसा कि सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बताया) के कारण स्थानीय हिन्दू कुछ खुल कर नहीं बोल रहे हैं? बच्चों के हाथ में भगवा झंडा देख कर उन पर मुस्लिमों की भीड़ ने हमला किया लेकिन फिर भी कार्रवाई हिन्दू संगठन के कार्यकर्ताओं पर ही क्यों की गई?
ऑपइंडिया ने वहाँ लोगों से बात करने के बाद यह पाया कि स्थानीय व्यापारी से लेकर अन्य आम लोग तक, सभी घटना को लेकर सहमे हुए हैं। दुकानदारों को डर है कि उनका नाम आने से उन्हें आर्थिक बहिष्कार से लेकर हिंसा तक का सामना करना पड़ सकता है। आपको बता दें कि यह वही इलाका है जहाँ क्रिकेट मैच में पाकिस्तान के जीतने के बाद मज़हबी नारे लगने और पटाखे छूटने जैसी घटनाएँ आम हैं।
हमारे रिपोर्टर ने क्षेत्र का दौरा कर कई पक्षों से बातचीत के बाद पाया कि पुलिस मुस्लिमों के आरोपित होने वाले मामलों में कार्रवाई से हिचकती है। साथ ही, वहाँ रिपोर्टिंग करते हुए लोगों से बातचीत करने के प्रयासों के दौरान भी ऑपइंडिया रिपोर्टर को डर का अनुभव हुआ क्योंकि लोग संदेह की निगाहों से देख रहे थे।
ख़बरों के अनुसार, ऐसा भी आरोप था कि हिन्दुओं ने पहले नारे लगाए जबकि इस रैली में हिन्दू संगठनों द्वारा पहले किसी भी प्रकार के भड़काऊ नारे नहीं लगाए गए, वो सिर्फ़ दिल्ली और उत्तराखण्ड की घटना पर अपना विरोध प्रदर्शित कर रहे थे और वे भगवा झंडे लेकर आगे बढ़ रहे थे। आयोजकों ने बताया कि उनके पास आयोजन के लिए पुलिस की भी अनुमति थी। फिर भी अराजक मुस्लिमों की भीड़ ने इतना उत्पात मचाया। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया कि इस इलाके में मुस्लिमों द्वारा किए गए बड़े अपराध के बाद भी पुलिस उन पर कार्रवाई करने से डरती है और इसी वजह से ये लोग बेख़ौफ़ होकर पाकिस्तान समर्थित नारे भी लगाते रहे हैं। इलाक़े के मुस्लिम समुदाय के लोगों का संदिग्ध इतिहास होने के बावजूद पुलिस उनके खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई करने से बचती रही है।
बता दें कि यहाँ मुस्लिम समाज के लोगों ने ज़मीन पर कब्ज़ा कर मक़बरा इत्यादि बनाने का एक क्रम भी चालू कर दिया है, जिसे स्थानीय लोगों द्वारा ‘लैंड जिहाद’ कहा जा रहा है। हालाँकि, एक तरफ तो कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा है कि क़ानून व्यवस्था बिगाड़ने की इजाजत किसी को नहीं दी जाएगी और उन्होंने पुलिस की पीठ भी थपथपाई है। फिर भी खौफ, इतना ज़्यादा है कि इनामुल्ला बिल्डिंग के आसपास के हिन्दू लोग कुछ भी बोलने से डर रहे हैं, यहाँ तक कि वे पत्रकारों के सवालों के जवाब देने से भी बच रहे हैं।
इस पूरे घटनाक्रम की मीडिया में बहुत कम रिपोर्टिंग हुई है। कहा जा रहा है कि आसपास मुस्लिम समुदाय की आबादी ज्यादा होने कारण मीडिया भी वहाँ फूँक-फूँक कर क़दम रख रहा है और इलाके की संवेदनशीलता को देखते हुए किसी से सवाल पूछने से बच रहा है।
इतना कुछ होने के बाद भी प्रशासन और पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है। हिंदूवादी संगठनों ने अपने कार्यकर्ताओं की पिटाई करने वाले मुस्लिमों की पहचान कर उन्हें कड़ी सज़ा देने की माँग की है। हिंदूवादी संगठनों के पदाधिकारी इस बात को लेकर भी आक्रोशित हैं कि एक तो हिन्दुओं को पीटा गया और ऊपर से पुलिस दोषियों को पकड़ने की बजाय पीड़ित पक्ष अर्थात हिन्दू समुदाय के लोगों के ऊपर ही कार्रवाई कर रही है। आखिर, ऐसा कब तक चलेगा? कब तक एक मज़हब के लोग खुलेआम अराजकता का नंगा प्रदर्शन करके भी मेनस्ट्रीम मीडिया के एक धड़े के दुलारे ‘समुदाय विशेष’ बने रहेंगे और एक शांतिपूर्ण समुदाय शांति से भी अपने हक़ और न्याय की माँग की बात भी नहीं रख पाएगी?
(सभार)