डॉ. वेद प्रताप वैदिक
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग के साथ अपनी चीन-यात्रा के दौरान नौ समझौते पर दस्तखत किए हैं। भारत में बजट का इतना शोर-गुल था कि इस महत्वपूर्ण घटना पर हमारा ज्यादा ध्यान नहीं गया। हमारे पड़ौसी देश किसी भी महाशक्ति के साथ अपने द्विपक्षीय संबंध बढ़ाएं, इसमें भारत को कोई आपत्ति क्यों होनी चाहिए लेकिन हमारे पड़ौसी देशों के साथ चीन जिस तरह से घनिष्टता बढ़ा रहा है, उससे यह शंका पैदा होती है कि वह कहीं कोई साम्राज्यवादी जाल तो नहीं बिछा रहा है।
उसने पाकिस्तान पर 60 बिलियन डाॅलर न्यौछावर करने की घोषणा तो पहले ही कर रखी है, अब उसने बांग्लादेश को 31 बिलियन डाॅलर याने सवा दो लाख करोड़ रु. देने की का भी निश्चय किया है। पाकिस्तान को यह राशि वह रेशम महापथ बनाने के लिए दे रहा है तो बांग्लादेश को वह बांग्लादेश-चीन-भारत और म्यांमार के बीच सड़क बनाने के लिए दे रहा है। जिन निर्माण-कार्यों पर चीन अपना पैसा पानी की तरह बहा रहा है, उन निर्माण-कार्यों की मूल योजना का भारत ने बहिष्कार किया हुआ है। उसके दो सम्मेलनों में भारत का कोई प्रतिनिधि गया ही नहीं। सिर्फ पाकिस्तान और बांग्लादेश ही नहीं, चीन की कोशिश है कि भारत के सभी पड़ौसी देश उसकी गिरफ्त में आ जाएं।
उसने नेपाल, श्रीलंका, बर्मा, मालदीव आदि देशों पर जबर्दस्त डोरे डाले हैं। इन देशों में उसकी रणनीति इसलिए भी सफल हुई है कि इन देशों में ऐसी सरकारें आ गई थीं जो भारत के प्रति कम मैत्रीपूर्ण या उसकी विरोधी रहीं। जैसे मालदीव में यामीन सरकार, श्रीलंका में महिंद राजपक्ष सरकार और नेपाल में ओपी कोली सरकार। बांग्लादेश को भी चीन ने तब तक (1975) मान्यता नहीं दी थी, जब तक वहां भारतप्रेमी शेख मुजीब जिंदा थे। जिया-उर-रहमान की सरकार से ही उसने कूटनीतिक संबंध स्थापित किये थे। चीन ने न केवल बांग्लादेश के निर्माण का विरोध किया था बल्कि उसके संयुक्तराष्ट्र संघ-प्रवेश का भी विरोध किया था।
इस समय चीन-बांग्ला व्यापार 10 बिलियन डाॅलर का है, जिसमें चीन का पलड़ा 9 बिलियन डाॅलर भारी है। पूरा बांग्लादेश चीनी माल से पटा रहता है। बांग्ला फौज के पास चीनी हथियार ही सबसे ज्यादा हैं। 2016 में चीनी राष्ट्रपति शी चिन पिंग ने ढाका में घोषणा की थी कि वे बांग्लादेश को 24 बिलियन डाॅलर की आर्थिक सहायता देंगे। बांग्लोश चीन और भारत के बीच भारी संतुलन बनाने की कोशिश करता रहता है, क्योंकि वह भूला नहीं है कि भारत ने ही उसे बनवाया है। शेख हसीना ने इसी चीन-यात्रा के दौरान दालिन में हुए एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत के साथ अपने संबंधों को अत्यंत घनिष्ट बताया है।
(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से)