पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली आज (8 जुलाई) अपना 48वां जन्मदिन मना रहे हैं. 11 साल पहले आखिरी टेस्ट मैच खेलने वाले सौरव की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आठ जुलाई आने से कई घंटे पहले ही ट्विटर पर उनका जन्मदिन ट्रेंड करने लगा था. अपने करियर की शुरुआत में ‘प्रिंस ऑफ कोलकाता’, ‘बंगाल टाइगर’ और ‘महाराजा’ के नाम से मशहूर हुए सौरव ने जब 2008 में आखिरी टेस्ट मैच खेला तब तक वे सबके ‘दादा’ बन चुके थे. यह शायद क्रिकेट का अकेला ऐसा खिलाड़ी होगा, जिसकी ‘दादागिरी’ सबको पसंद थी. वे आजकल इंग्लैंड में जारी विश्व कप में कॉमेंट्री कर रहे हैं.
सौरव गांगुली भारत के सफलतम कप्तानों में से भी एक रहे हैं. महेंद्र सिंह धोनी से लेकर विराट कोहली तक कप्तानी के मामले में आज उनसे भले ही आगे निकल गए हों. लेकिन यह सभी जानते हैं कि वे सौरव गांगुली ही थे, जिन्होंने भारतीय क्रिकेटरों को दुनिया के दिग्गज क्रिकेटरों से आंख में आंख डालकर खेलना सिखाया. सौरव गांगुली ने 113 टेस्ट में 7,212 रन और 311 वनडे में 11,363 रन बनाए हैं. अगर आप इन आंकड़ों से उनकी महानता को आंकने की कोशिश करेंगे, तो यकीन मानिए आप कभी भी सही नतीजे तक नहीं पहुंच पाएंगे.
अपनी जगह सहवाग से कराई ओपनिंग
सौरव गांगुली के खूबसूरत क्रिकेट का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राहुल द्रविड़ ने एक बार कहा था- ऑफ साइड पर पहले भगवान हैं, उसके बाद दादा. गांगुली की कप्तानी ने उनकी बल्लेबाजी को जरुर थोड़ा हाशिये पर पहुंचाया, लेकिन इसकी एक वजह यह भी थी कि उन्होंने अपने खेल से ऊपर टीम को रखा. तभी तो उन्होंने सचिन तेंदुलकर के साथ अपनी जमी-जमाई जोड़ी तोड़कर वीरेंद्र सहवाग से ओपनिंग कराना शुरू कर दिया था. बाद में वीरू और सचिन की जोड़ी दुनिया को डराने लगी. हालांकि, इससे सौरव का दबदबा भी थोड़ा कम हो गया था.
सौरव गांगुली ने अपने टेस्ट करियर का आगाज ‘क्रिकेट के मक्का’ माना जाने वाला लार्ड्स में शतक जमा कर किया था. दरअसल, सौरव गांगुली का उदय उस समय हुआ जब भारतीय क्रिकेट मैच फिक्सिंग स्कैंडल से बुरी तरह टूटा हुआ था. उस समय दादा ने टीम की कप्तानी संभाली. उन्होंने इस खेल के प्रति विश्वास और प्रेम दोबारा बहाल किया. भारत उनकी कप्तानी में आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी का चैंपियन बना. साल 2003 में खेले गए विश्व कप में उपविजेता रहा. उनकी कप्तानी की सबसे यादगार जीत नेटवेस्ट ट्रॉफी के फाइनल में मिली थी. तब उन्होंने इस जीत की खुशी में लॉर्ड्स में शर्ट लहराई थी.
चैपल के कोच बनते ही बदला समीकरण
कुछ साल बाद ग्रेग चैपल से विवाद के कारण सौरव के करियर में गिरावट आने लगी. उन्हें टीम से निकाल दिया गया. लेकिन गांगुली ने वापसी की. वे टीम में दोबारा वापस आए. 2007 में गांगुली ने वनडे में एक हजार से अधिक रन बनाए. टेस्ट में भी उन्होंने एक हजार से अधिक रन बनाए. उस कैलेंडर ईयर में वह 2346 रन बनाकर प्रमुख स्कोरर रहे. उन्हें अगले साल ही ‘एशियन क्रिकेटर ऑफ द ईयर’ का अवॉर्ड मिला. 2008-09 में उन्होंने क्रिकेट से संन्यास ले लिया.
युवराज, भज्जी, जहीर का करियर संवारा
सौरव गांगुली को भविष्य के क्रिकेटरों को तैयार करने का श्रेय भी दिया जाता है. वीरेंद्र सहवाग, युवराज सिंह, हरभजन सिंह, जहीर खान और महेंद्र सिंह धोनी ने उनकी कप्तानी में ही अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की. इंडियन क्रिकेट में सौरव गांगुली ही हैं, जिन्होंने भारतीय क्रिकेट का चेहरा बदल दिया. गांगुली की अक्सर इस बात के लिए आलोचना होती है कि वे स्वार्थी बल्लेबाज थे. कुछ लोग उन्हें अशिष्ट, अक्खड़ और अभिमानी भी कहते हैं, लेकिन इसके बावजूद आप उनसे प्रेम करिये या नफरत लेकिन भारतीय क्रिकेट में उनकी उपेक्षा करना आसान नहीं है. उनके बिना भारतीय क्रिकेट की कल्पना भी नहीं की जा सकती.