राजेश श्रीवास्तव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक बार का पांच वर्ष का कार्यकाल बीत गया नसीहत देते-देते लेकिन पिछली बार के कार्यकाल में भाजपाइयोंं ने इतना दुस्साहस नहीं दिखाया जितना इस बार उनमें जोश दिख रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाख नसीहतें देते रहें लेकिन भाजपाइयों का दिल है कि मानता ही नहीं। फिर चाहे विजय वर्गीय हों या आकाश या फिर भाजपा के उत्तर प्रदेश के विधायक या फिर सांसद राम शंकर कठेरिया। कोई अधिकारी को पीट रहा है तो कोई टोल कर्मियों को। कोई गाली-गलौज कर रहा है तो कोई धमकी। अब इसे भाजपा नेताआंे का अति उत्साह कहें या फिर कुछ और। लेकिन इतना तो तय है कि यह भाजपा के भविष्य के लिए उचित नहीं दिखता। यह बात दूसरी है कि अभी तो भाजपा के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसा उदीयमान नेता है जो सारी खामियों को अपनी ऊर्जा से ढक देता है। लेकिन ऐसा बहुत लंबे समय तक नहीं चल सकेगा, यह तय है।
बीती भाजपा संसदीय दल की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, कि बेटा किसी का हो, ऐसा व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। उन्होंने कहा कि किसी भी प्रकार का दुर्व्यवहार, जो पार्टी का नाम कम करता है, अस्वीकार्य है। उन्होंने कहा कि अगर किसी ने कुछ गलत किया है तो कार्रवाई की जानी चाहिए। यह सभी पर लागू है। मोदीजी ने किसी का नाम नहीं लिया, कोई संदर्भ नहीं बताया, क्योंकि वे भी ये मानते होंगे कि समझदार को इशारा काफी है। अब यह तो पता नहीं कि बैठक में मौजूद कैलाश विजयवर्गीय ने कितनी समझदारी दिखाई, लेकिन जनता जानती है कि मोदीजी का इशारा भाजपा के बैटमैन आकाश विजयवर्गीय की ओर था। सवाल यह भी है कि इस बार प्रधानमंत्री नाम लेने से क्यों बचे ?
प्रधानमंत्री ने साफ-साफ नाम लेकर सख्ती क्यों नहीं दिखाई? गलत व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, ऐसे कथनों का क्या ताात्पर्य? क्योंकि आकाश विजयवर्गीय तो अब भी भाजपा में हैं, और उन पर पार्टी की ओर से कोई कार्रवाई भी नहीं की गई है। क्या प्रज्ञा ठाकुर पर कार्रवाई के लिए शुभ मुहूर्त का इंतजार कर रही भाजपा आकाश विजयवर्गीय के मामले में भी ऐसा ही रुख अपनाएगी। याद करें कि कैसे चुनाव प्रचार के दौरान प्रज्ञा ठाकुर ने हेमंत करकरे की शहादत पर विवाादित टिप्पणी की थी, उसके बाद गांधीजी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताया था। तब भी मोदी जी ने माफ नहीं करूंगा वाले तेवर दिखाए थे।
प्रज्ञा ठाकुर संसद भी पहुंच गईं, लेकिन मोदीजी के तेवर बातों तक ही सीमित रहे। वैसे यही उनकी अदा है, जिससे वे जनता को लुभाते हैं और जनता भी काठ की हांडी को बार-बार चढ़ने देती है। मोदीजी शुरु से वीआईपी कल्चर दूर करने की बात करते रहे हैं, खुद को जनता के बीच का आदमी बताने के लिए बार-बार अपने चायवाले अवतार को याद दिलाते रहे हैं। लेकिन पिछले पांच सालों में भाजपा नेताओं की दबंगई के कई प्रकरण हुए और इस हालिया अतीत से आगत की तस्वीर बनाना कुछ कठिन नहीं है। दरअसल सत्ता विजेता राजनेताओं के सिर चढ़कर बोल रही है। तभी तो इंदौर प्रकरण के बाद तेलंगाना से ऐसी ही घटना सामने आई।
कागजनगर कस्बे में वनविभाग की टीम पौधारोपण अभियान के लिए पहुंची, तो एक महिला वनअधिकारी पर भीड़ ने हमला किया, उन पर लाठियों से प्रहार किए। इस घटना का वीडियो भी बनाया गया, लेकिन महिला अधिकारी को बचाने का प्रयास किसी ने नहीं किया। भीड़ का नेतृत्व सत्ताधारी पार्टी टीआरएस के एक विधायक के भाई कोनेरू कृष्णा कर रहे थे, जो खुद जिला परिषद के अध्यक्ष हैं। घटना के बाद उन्हें अन्य 15 लोगों के साथ गिरफ्तार किया गया। उन्होंने पद से इस्तीफा भी दे दिया, लेकिन सत्ता के अहंकार से ये लोग कभी इस्तीफा दे पाएंगे, यह गूढ़ प्रश्न है। ऐसी घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि हिदुस्तान में वीआईपी कल्चर ही नहीं बढ़ रहा, सत्ता की धौंस भी बढ़ गई है। पहले केवल आम जनता इससे त्रस्त थी, अब कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी निशाने पर हैं। और देश के प्रधानमंत्री इन लोगों का नाम लेकर निदा भी नहीं कर सकते। क्या ऐसे मजबूत होगा लोकतंत्र? इन सभी घटनाओं और नेताओं व प्रधानमंत्री के रवैये से साफ होता है कि या तो सत्ता के नश्ो में डूबे भाजपा के नेता जानते हैं कि प्रधानमंत्री सिर्फ कहते हैं कोई कार्रवाई नहीं करेंगे। जब प्रज्ञा पर कुछ नहीं हुआ तो आगे भी सिर्फ बयानबाजी ही होगी। यही सोच कर भाजपाई भी मस्त हैं और प्रधानमंत्री भी।