नई दिल्ली। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद यह तय हो गया है कि पार्टी अब नए नेतृत्व के साथ आगे जाएगी. 16 दिसंबर 2017 को कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने वाले राहुल ने 2 वर्ष से भी कम समय में ही इस जिम्मेदारी से इस्तीफा दे दिया.
राहुल की जगह नया अध्यक्ष चुनना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा. कांग्रेस को 20 वर्ष से अधिक समय से गांधी परिवार की आदत लगी है. पार्टी से जुड़े फैसले हों या बीच में 10 वर्ष की यूपीए सरकार, ऐसी धारणा रही है कि हर फैसले में गांधी परिवार की सहमति आवश्यक रही है. पार्टी ने गांधी परिवार से इतर कभी सोचा भी नहीं. सोनिया गांधी के बाद पार्टी की कमान राहुल गांधी को सौंपी गई.
राहुल से पार्टी नेताओं को लंबे समय तक नेतृत्व की आस थी. लेकिन लोकसभा चुनाव में करारी मात के बाद राहुल गांधी ने नेतृत्व से किनारा किया ही, गांधी परिवार से अगले अध्यक्ष की संभावनाओं पर भी विराम लगा दिया. ऐसे में कांग्रेस के लिए राहुल की जगह नया अध्यक्ष चुनने की राह मुश्किल होगी.
गांधी परिवार की आदी हो चली कांग्रेस में अध्यक्ष के लिए कोई तैयारी नहीं है. इसकी वजह यह भी है कि पार्टी ने हाल के वर्षों में परिवार से इतर कभी सोचा भी नहीं. पार्टी में दूसरी पंक्ति के नेतृत्व का अभाव है. जो है भी, वह राज्यसभा में हैं और उनकी छवि डिप्लोमेट की है. कांग्रेस में जनाधार वाले नेताओं का अभाव है.
कुछ ऐसे नेता हैं भी तो वह क्षेत्र विशेष तक सीमित हैं. गांधी परिवार के वर्चस्व में वह क्षेत्रीय क्षत्रप बनकर रह गए. कई ने पार्टी से किनारा कर अपनी पार्टियां बना लीं. पिछले कुछ दिनों से राहुल और मराठा क्षत्रप शरद पवार की मुलाकातों के बाद कांग्रेस और एनसीपी के विलय पर चर्चा की खबरें आती रहीं. पवार का नाम भी कांग्रेस की कमान सोनिया के पास जाने के बाद पार्टी छोड़ने वाले नेताओं की सूची में शामिल है.
राष्ट्रीय स्तर के चेहरे का अभाव
कांग्रेस में ऐसे नेता का अभाव है, जो राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य हो. इसके पीछे भी राजनीति के जानकार पार्टी पर गांधी परिवार की पकड़ को प्रमुख वजह बताते हैं. राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी कहते हैं कि गांधी परिवार ने किसी नेता को बढ़ने भी नहीं दिया. वह कहते हैं कि सीताराम केसरी से पहले पार्टी के अध्यक्ष रहे पीवी नरसिम्हाराव के बाद कोई ऐसा गैर गांधी नेता नहीं हुआ, जिसका राष्ट्रीय स्तर पर जनाधार और स्वीकार्यता हो.
गुटबाजी भी बड़ी चुनौती
कांग्रेस के लिए नया अध्यक्ष चुनने में गुटबाजी भी बड़ी चुनौती होगी. पार्टी में गुटबाजी की तरफ राहुल ने भी इशारा किया, लेकिन अमिताभ तिवारी इसके लिए भी गांधी परिवार को ही प्रमुख वजह बताते हैं. वह कहते हैं कि बतौर कांग्रेस अध्यक्ष पीवी नरसिम्हा राव का कार्यकाल बिना किसी हस्तक्षेप के पूरा हुआ था. इसके बाद सीताराम केसरी को हटा पार्टी की कमान सोनिया गांधी को सौंप दी गई. दूसरी तरफ एक धारणा यह भी रही है कि गांधी परिवार पर पार्टी की निर्भरता बनी रहे, केवल इसलिए पार्टी के नेताओं को एक-दूसरे में उलझाकर रखा गया.
हिंदी हार्टलैंड से नेता का चुनाव कठिन
अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही कांग्रेस के नजरिए से अध्यक्ष हिंदी हार्टलैंड का होना जरूरी है. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि पार्टी उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में अपने अस्तित्व को संघर्ष कर रही है. नेताओं की खान रहे इन राज्यों में पार्टी के पास नेताओं का टोटा है.
कांग्रेस संविधान के अनुसार पार्टी की कमान वरिष्ठ महासचिव संभाल सकता है, लेकिन राहुल की कार्यकारिणी में सबसे वरिष्ठ महासचिव रहे अशोक गहलोत पहले ही जिम्मेदारी संभालने से इनकार कर चुके हैं.
राहुल गांधी ने ऐसे समय पर पार्टी का नेतृत्व छोड़ा है, जब पार्टी देश की आजादी के बाद अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है. राहुल के कद का कोई नेता कांग्रेस में इस वक्त नजर नहीं आ रहा, जो पार्टी को देश में नेतृत्व दे सके. ऐसे में राहुल की जगह नए अध्यक्ष के मनोनयन से पार्टी को विशेष लाभ होता नहीं दिख रहा.