राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद से औपचारिक रूप से इस्तीफा देने की खबर आज सोशल मीडिया में काफी चर्चा में है. राहुल गांधी ने यह जानकारी देते हुए अपने ट्विटर हैंडल से चार पेज की एक चिट्ठी साझा की है और इसे हजारों लोगों ने लाइक और रीट्वीट किया है. यह बड़ी ही भावुक सी चिट्ठी है और सोशल मीडिया पर कई लोगों ने राहुल के इस फैसले के साथ-साथ इस चिट्ठी की तारीफ भी की है. वहीं इस पर कार्टूनिस्ट मंजुल ने ट्विटर के जरिए चुटकी ली है, ‘जिसने राहुल जी का इस्तीफा लिखा है अगर उसी ने उनके चुनावी भाषण भी लिखे होते तो कांग्रेस की हालत आज कहीं बेहतर होती.’
इस बीच आज भी कई कांग्रेसी नेताओं के बयान आए हैं कि राहुल गांधी को अपने फैसले पर फिर से विचार करना चाहिए. फेसबुक और ट्विटर पर इस बात का जिक्र करते हुए इन नेताओं की आलोचना की गई है. वरिष्ठ पत्रकार उमाशंकर सिंह का कहना है, ‘अब कांग्रेस के नेताओं को मान लेना चाहिए कि राहुल गांधी नहीं मानने वाले इसलिए मिलकर मनाने या धरना प्रदर्शन में शामिल होने की नौटंकी छोड़कर नए अध्यक्ष के चयन में जुट जाना चाहिए. अपने ‘पूर्व अध्यक्ष’ की ये बात याद रहे कि ‘पार्टी को पुनर्गठित करने के लिए कड़े फ़ैसले लेने होंगे.’ वहीं सोशल मीडिया पर यह कयासबाजी भी चल रही है कि कांग्रेस का अगला अध्यक्ष कौन होगा.
राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद देश में बेरोजगारी की दर और बढ़ने वाली है. अब उन्हें गरियाने वाले कई पत्रकार, कॉमेडियन, दूसरे-तीसरे दर्जे के फिल्मकार, और 40 पैसा प्रतिट्वीट करने वाले लोग और एनजीओ खतरे में पड़ गए हैं.
राहुल गांधी ने अपने इस्तीफे के पहले पेज पर पार्टी की हार की जिम्मेदारी ली है, लेकिन जब आप तीसरे पेज तक पहुंचते हैं तो वे दावा करते मिलते हैं कि कांग्रेस इसलिए हारी क्योंकि सारे संस्थान- जैसे चुनाव आयोग, न्यायपालिया, मीडिया आदि को कब्जे में किया गया था. वे फिर कन्फ्यूज दिख रहे हैं? या फिर वे इस्तीफा देकर महात्मा तो दिखना चाहते हैं, लेकिन हार की जिम्मेदारी लेना नहीं चाहते?
राजदीप सरदेसाई | @sardesairajdeep
मेरे ख्याल से राहुल गांधी को वह काम करने का श्रेय मिलना चाहिए जो इस देश के नेता बहुत कम करते हैं… असल में इस्तीफा देना और चुनावों में हार की जिम्मेदारी लेना. लेकिन अब कांग्रेस ‘सिरकटे मुर्गे’ की तरह जहां-तहां भागकर उन्हें नीचा दिखा रही है.
यह अच्छी बात है कि राहुल गांधी अपने इस्तीफे पर अड़े रहे लेकिन बिना चुनाव के कांग्रेस कार्यसमिति अगर अगला अध्यक्ष नियुक्त करती है तो वह व्यक्ति भी कठपुतली होगा और फिर बदलाव की प्रक्रिया का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.
कांग्रेस की बीमारी यही है कि उसके नेता न तो पहले राहुल गांधी की सुनते थे और न अब सुन रहे हैं.