नई दिल्ली। लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफे की जो पेशकश की थी, उस पर वे अब तक कायम हैं. बीच में ऐसा लगा था कि शायद पार्टी के दूसरे नेताओं के दबाव में राहुल गांधी अध्यक्ष पद पर बने रहें. कांग्रेस के अधिकांश नेताओं ने उनसे सार्वजनिक तौर पर अपील की है कि उन्हें नेतृत्व करते रहना चाहिए. लेकिन इसके बावजूद राहुल गांधी ने संसद सत्र शुरू होने के बाद इस बात के स्पष्ट संकेत दिए हैं कि वे अध्यक्ष नहीं रहेंगे.
ऐसे में कांग्रेस को एक नए अध्यक्ष की तलाश करनी होगी. इसमें भी यह लगभग तय है कि गांधी परिवार से इस कुर्सी पर कोई नहीं बैठेगा. राहुल गांधी की मां और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की सेहत ठीक नहीं रहती. राहुल गांधी खुद हट रहे हैं तो ऐसे में प्रियंका गांधी एक विकल्प बचती हैं. वे सक्रिय राजनीति में आ भी गई हैं और बतौर कांग्रेस महासचिव उनके पास पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभार भी है. लेकिन राहुल गांधी ने पहले दिन से यह स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस का नया अध्यक्ष गांधी परिवार के बाहर से होना चाहिए. इसका मतलब यह हुआ कि प्रियंका गांधी के अध्यक्ष बनने की संभावना नहीं के बराबर है.
अशोक गहलोत
कांग्रेस के नए अध्यक्ष के तौर पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम सबसे प्रमुखता से चल रहा है. हालांकि, अशोक गहलोत से जब भी इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने इस बारे में सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी. उनके साथ अनौपचारिक बातचीत में शामिल रहे कुछ पत्रकारों का दावा है कि वे राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के लिए कोई खास इच्छुक नहीं हैं.
लेकिन पार्टी के अंदर अशोक गहलोत की पहचान एक ऐसे नेता की रही है जिसकी न सिर्फ जमीन पर पकड़ है बल्कि संगठन के स्तर पर भी वे बेहद मजबूत माने जाते हैं. कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद कायम करने में वे माहिर हैं. जिस राज्य के भी प्रभारी के नाते उन्होंने काम किया है, उस राज्य के कार्यकर्ता उनकी तारीफ करते हुए नहीं थकते. 2017 में हुए गुजरात विधानसभा चुनावों अशोक गहलोत कांग्रेस के प्रभारी थे. उस चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी सुधरा और इसका श्रेय भी उन्हें दिया गया. उन्होंने लंबे समय तक पार्टी में संगठन महासचिव के तौर पर काम किया है. गांधी परिवार के विश्वस्त नेताओं में उन्हें शुमार किया जाता है. अशोक गहलोत की एक पहचान यह भी है कि वे विरोधी दलों के नेताओं से भी अच्छे संबंध बनाकर चलते हैं. इन खूबियों की वजह से माना जा रहा है कि वे कांग्रेस अध्यक्ष बनने की दौड़ में प्रमुखता से शामिल हैं.
जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के एक ऐसे नेता हैं जो 1980 में महाराष्ट्र से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद पार्टी में लगातार मजबूत ही हुए हैं. कोई भी अध्यक्ष रहा हो, गुलाम नबी आजाद कभी कमजोर नहीं हुए. अभी वे राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं. उनके बारे में भी चर्चा है कि उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जा सकता है.
लेकिन उन्हें अध्यक्ष बनाने के कुछ फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी. फायदा यह है कि उदार छवि रखने वाले गुलाम नबी आजाद पार्टी के अंदर सबको साथ लेकर चलने की पहचान रखते हैं. इसके अलावा दूसरे दलों के नेताओं से भी उनके अच्छे संबंध बताए जाते हैं. कांग्रेस में कुछ लोगों को लगता है कि कई राज्यों में जहां मजबूत क्षेत्रीय दल हैं, वहां मुस्लिम मतदाता कांग्रेस से अलग होकर उन क्षेत्रीय दलों के पास चले गए हैं. ऐसे में अगर गुलाम नबी आजाद कांग्रेस अध्यक्ष बनते हैं तो ये मतदाता वापस कांग्रेस के पाले में आ सकते हैं.
लेकिन नुकसान यह है कि अभी आक्रामक राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की बात करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी केंद्र की सत्ता में हैं. ऐसे में अगर गुलाम नबी आजाद कांग्रेस अध्यक्ष बनते हैं तो भाजपा कांग्रेस पर अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण का आरोप और आक्रामकता से लगा सकती है. भाजपा का प्रचार तंत्र देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वह इसका लाभ भी ले सकती है.
कांग्रेस अध्यक्ष के लिए जो नाम चल रहे हैं, उनमें सबसे युवा 56 साल के केसी वेणुगोपाल ही हैं. मनमोहन सिंह की सरकार में वे केंद्रीय मंत्री रहे हैं. अभी वे कांग्रेस में संगठन महासचिव के नाते काम कर रहे हैं. केरल के केसी वेणुगोपाल अभी की कांग्रेस की दूसरी पीढ़ी के तेजतर्रार नेताओं में शुमार किए जाते हैं. उनकी सबसे बड़ी ताकत यह है कि उन पर राहुल गांधी समेत पूरा गांधी परिवार बहुत भरोसा करता है. संगठन की राजनीति में वे बेहद मजबूत स्थिति में हैं. संगठन में काम करने के नाते उन्होंने अधिकांश राज्यों के प्रमुख नेताओं से अच्छे संबंध बनाए हैं.
केसी वेणुगोपाल के पक्ष में उनकी अपेक्षाकृत कम उम्र के अलावा एक बात यह भी जाती है कि वे दक्षिण भारतीय राज्य केरल से हैं. लोकसभा चुनावों में पूरे देश में मिली बुरी हार के बावजूद केरल में कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा है. पार्टी के अंदर एक खेमा है जो मानता है कि उत्तर भारत में भाजपा बेहद मजबूत है, लेकिन दक्षिण भारत में उसकी पैठ नहीं बन पा रही है और ऐसे में कांग्रेस को दक्षिण भारत में अपनी स्थिति और मजबूत करनी चाहिए. अगर इस दिशा में पार्टी की सोच आगे भी जाती है तो केसी वेणुगोपाल के अध्यक्ष बनने की संभावनाएं बढ़ेंगी.
कैप्टन अमरिंदर सिंह
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने लगातार यह पहचान बनाई है कि पूरे देश में चाहे जो भी लहर हो, लेकिन पंजाब में उनकी ही लहर रहती है. 2014 के बाद 2019 के लोकसभा चुनावों में भी उन्होंने देशव्यापी मोदी लहर को बेअसर कर दिया. 2014 में कैप्टन ने अमृतसर से अरुण जेटली को चुनाव हराया. इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा और उसकी सहयोगी शिरोमणि अकाली दल को सत्ता से बेदखल करके उन्होंने कांग्रेस की सरकार बनाने में सफलता हासिल की. ऐसे में पार्टी के अंदर कुछ नेताओं की मांग यह है कि अगर गांधी परिवार के बाहर से ही अध्यक्ष बनाना हो तो कैप्टन अमरिंदर सिंह को यह दायित्व दे देना चाहिए.
एके एंटनी
मनमोहन सिंह सरकार में रक्षा मंत्री रहे एके एंटनी का नाम भी कुछ लोग नए कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चला रहे हैं. लेकिन 78 साल के एके एंटनी के नाम पर सहमति बनना मुश्किल है. उनके पक्ष में जो बातें कही जा रही हैं, उनमें सबसे पहले यह कहा जा रहा है कि वे गांधी परिवार के सबसे विश्वस्त लोगों में से एक हैं. दक्षिण भारत में कांग्रेस के विस्तार की संभावनाओं के बीच उनका केरल से होना भी उनके पक्ष में जाता है.
लेकिन एके एंटनी की अड़चनें भी कम नहीं है. सबसे पहली अड़चन उनकी उम्र है. केसी वेणुगोपाल को राहुल गांधी ने जिस ढंग से महत्व दिया है, उससे भी यही लगता है कि वे केरल से एके एंटनी की जगह केसी वेणुगोपाल को नेतृत्व की भूमिका में देखते हैं. ऐसे में एंटनी का अध्यक्ष बनना मुश्किल लगता है. लेकिन कांग्रेस के कुछ नेता यह भी कहते हैं कि अगर किसी नाम पर सहमति बनती नहीं दिखी और सोनिया गांधी को नया अध्यक्ष मनोनीत करना पड़ा तो एके एंटनी अध्यक्ष बनाए जा सकते हैं.