नई दिल्ली। ये अश्विनी वैष्णव कौन हैं, जिनके लिए पीएम नरेन्द्र मोदी ने नवीन पटनायक को फ़ोन किया. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी उनके लिए ओडिशा के सीएम से बातचीत की. IAS अधिकारी रहे वैष्णव को पार्टी ने राज्य सभा का उम्मीदवार बनाया है. मोदी और शाह के कहने पर पटनायक की पार्टी बीजेडी ने भी उनका समर्थन देने का फ़ैसला किया है. 22 जून को वैष्णव ने भुवनेश्वर में बीजेपी की सदस्यता ली. उनका राज्य सभा का सांसद चुना जाना तय है. राजनीतिक गलियारों में इस बात की बड़ी चर्चा है कि आख़िर वैष्णव में क्या ख़ास है ? जिसके लिए मोदी से लेकर शाह तक उनकी पैरवी कर रहे हैं. नवीन पटनायक भी उनके लिए एक पैर पर खड़े हैं. चर्चा तो ये भी है कि वैष्णव को पीएम मोदी कोई बड़ी ज़िम्मेदारी दे सकते हैं.
अश्विनी वैष्णव राजस्थान के जोधपुर के रहने वाले हैं. वे 1994 बैच के आईएएस अफसर रह चुके हैं. जयनारायण व्यास यूनिवर्सिटी से उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की फिर आईआईटी कानपुर से उन्होंने एमटेक किया. अमेरिका के पेंसिलवेनिया विश्वविद्यालय से उन्होंने फ़ायनेंस में एमबीए किया. ओडिशा कैडर के आईएएस अधिकारी रहते हुए वैष्णव को बालासोर का डीएम बनाया गया. ये बात अब से बीस साल पहले की है. उन दिनों ओडिशा में भयंकर समुद्री तूफ़ान आया था. हज़ारों लोग की मौत हुई थी. बालासोर के डीएम रहते हुए राहत और बचाव के काम पर उनकी बड़ी तारीफ़ हुई. जब नवीन पटनायक ओडिशा के सीएम बने तो उन्हें कटक का कलेक्टर बनाया गया.
अश्विनी वैष्णव फिर प्रधानमंत्री ऑफ़िस में आ गए. अगस्त 2003 में वे पीएम अटल बिहारी वाजपेयी डिप्टी सेक्रेटरी बने. आठ महीनों तक वे इस पद पर बने रहे. वाजपेयी जब सत्ता से हट गए तब वे उनके निजी सचिव बन गए. इसके बाद वे क़रीब डेढ़ सालों तक गोवा पोर्ट के डिप्टी चेयरमैन रहे. फिर वैष्णव दो सालों के लिए स्टडी लीव पर चले गए. विदेश से लौटे तो आईएएस की नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया. इसके बाद वे कई प्राइवेट कंपनियों में वाइस प्रेसिडेंट से लेकर डायरेक्टर के पदों पर नौकरी करते रहे.
वाजपेयी सरकार में पीएमओ में तैनात रहते हुए अश्विनी वैष्णव ने बीजेपी के बडे नेताओं से संपर्क बना लिया, नरेंद्र मोदी भी उनमें से एक थे. वैष्णव जहां भी रहे, मोदी के लगातार संपर्क में रहे. इसी दौरान ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से भी उनकी नज़दीकियां बढ़ती गईं. बीजेपी और बीजेडी का गठबंधन नौ सालों तक बना रहा. कहते हैं कि अश्विनी वैष्णव की भी इसमें अहम भूमिका रही. बीजू जनता दल और बीजेपी के बीच उन्होंने कई बार सेतु का काम किया. बिना किसी पद पर रहते हुए वैष्णव की गिनती पटनायक के क़रीबी लोगों में होती रही है. यही वजह है कि बीजेडी भी उन्हें अपने कोटे से राज्य सभा भेजने को तैयार थी. लेकिन बीजेपी ने तो उन्हें अपना बनाने का फ़ैसला कर लिया था.
नवीन पटनायक चाहते तो राज्यसभा के लिए वे तीनों सीटें जीत सकते थे. 147 सदस्यों वाली ओडिशा विधानसभा में बीजेडी के 111 और बीजेपी के 23 विधायक हैं. लेकिन बीजू जनता दल ने दो ही उम्मीदवार उतारे. तीसरी सीट के लिए पटनायक ने बीजेपी का समर्थन कर दिया. ये असंभव इसी लिए संभव हो पाया क्योंकि बीजेपी ने अश्विनी वैष्णव को राज्य सभा का टिकट दे दिया. कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी ने बीजेडी के साथ डील कर लिया लेकिन सच तो कुछ और है. ये सब अश्विनी वैष्णव के मैनेजमेंट का कमाल है. उनके ही बैच के एक आईएएस अधिकारी बताते हैं कि अश्विनी मिलनसार क़िस्म के इंसान हैं. लेकिन वे बडे महत्त्वाकांक्षी है. तो क्या इसे ओडिशा में एक नये ताक़तवर राजनेता का उदय माना जाए ?