राजेश श्रीवास्तव
कभी देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि हम भारत में धर्मनिरपेक्ष राज की बात करते हैं। लेकिन संभवत: हिदी में ‘सेक्यूलर’ के लिए कोई अच्छा शब्द तलाशना भी मुश्किल है। कुछ लोग समझते हैं कि धर्मनिरपेक्ष का मतलब कोई धर्मविरुद्ध बात है। यह बिल्कुल भी सही नहीं है। इसका मतलब तो यह है कि एक ऐसा राज जो हर तरह की आस्था का बराबर आदर करता हो और सबको समान अवसर देता हो, देश के तौर पर वह खुद को किसी खास आस्था या धर्म से न जुड़ने दे। ऐसा होने पर ही राजधर्म बनता है।
आज नेहरू के राजधर्म और धर्मनिरपेक्षा के अंतर को समझने और आत्मसात करने की जरूरत आन पड़ी है। बीते सप्ताह संसद में जिस तरह से भारतीय संविधान की जिस तरह धज्जियां उड़ायी गयीं उससे एक बार तो यह लगने लगा कि यह कोई भारतीय संसद नहीं धर्म संसद चल रही है। हर सांसद अपने धर्म, अपने देवी-देवता की जय-जयकार करता दिखा। ईश्वर और धर्म के प्रति श्रद्धा अनुचित नहीं है लेकिन उसके लिए संसद में इस स्वरूप को प्रकट करना बिल्कुल उचित नहीं ठहराया जा सकता। आजादी के बाद से अब तक के लोकसभा के इतिहास का यह संभवत: पहला मौका था जब शपथ के बाद इतनी बड़ी संख्या में सांसद धार्मिक नारे लगाते दिखे। सांसदों ने नियमों के विरुद्घ शपथ लेने के बाद धार्मिक पहचान से जुड़े नारे लगाए। ऐसी नौबत आ गई कि प्रोटेम स्पीकर को दर्जनों बार शपथ के अतिरिक्त कोई और बात रिकार्ड में न डालने की बात दुहरानी पड़ी। दिलचस्प तो यह रहा कि सदन में प्रधानमंत्री खुद मौजूद थ्ो इसके बावजूद कोई रोक-टोक नहीं की गयी। सभी सांसद धार्मिक नारे लगाते वक्त गर्वित दिखायी पड़े।
भाजपा की वैतरिणी पर सवार होकर मोदी नाम से ही जीत हासिल करने वाले लोग जो पहली बार संसद पहुंचे वे शायद यह याद नहीं रख पाए कि उन्हें वोट देने वालों में हर धर्म और तबके के लोग शामिल होंगे। यानि वे संसद में किसी एक धर्म के प्रतिनिधि बनकर नहीं पहुंचे हैं। लेकिन इसके बावजूद संसद में धार्मिक नारे पूरी बेशर्मी के साथ लगाए गए। ऐसा लगा मानो नारे लगाने की कोई प्रतियोगिता चल रही है। उन्नाव से सांसद साक्षी महाराज ने संस्कृत में शपथ लेने के बाद भारत माता की जय और जय श्रीराम के नारे लगाए। इसी दौरान संसद में मौजूद कुछ सांसदों ने मंदिर वहीं बनाएंगे के नारे भी लगाए। तृणमूल कांग्रेस के सांसद जब शपथ लेने आए तो उन्होंने जय श्रीराम के नारों का जवाब जय काली और जय दुर्गा से दिया। हेमामालिनी ने शपथ लेने के बाद राधे राधे और कृष्णम वंदे जगत गुरु का नारा लगाया। नारों के इन शोर में अपनी आस्था के प्रदर्शन से अधिक विपरीत धर्म और पार्टी के लोगों को चिढ़ाने का भाव नजर आया, खासकर भाजपा सांसदों की ओर से। जब भी कोई सदस्य शपथ लेने आता, भाजपा के सदस्य जयश्री राम का नारा लगाने लगते। इसी बीच जब बारी असादुद्दीन ओवैसी की आई तो जयश्री राम और वंदे मातरम का नारा तेज हो गया। जवाब देने के लिए ओवैसी भी ने शपथ लेने के बाद ‘जय भीम’ ‘तकबीर अल्लाह हू अकबर’ और ‘जय हिद’ कहा, साथ ही लगे हाथ संविधान की याद भी जय श्री राम का नारा लगाने वाले सांसदों को दिला दी। इसी तरह शफीकुर्रहमान बर्क की बारी आई तो फिर से जयश्री राम का नारा तेज हो गया। इस पर शपथ लेने के बाद बर्क ने कहा कि संविधान जिदाबाद मगर वंदेमातरम इस्लाम के खिलाफ है। इस पर सदन में शेम शेम के नारे लगने लगे। अभी दो दिन पहले दूसरी बार पीएम बने नरेंद्र मोदी ने नए सदस्यों के साथ नए उत्साह की बात कही थी। संसद की गरिमा को ऊंचा रखने का इरादा जतलाया था। लेकिन मंगलवार को जो कुछ संसद के निचले सदन में घटित हुआ, उसमें लोकतंत्र और संविधान की जमकर धज्जियां उड़ी हैं। और जिस राम के नाम पर नारे लगाए गए, असल में उनका भी अनादर ही हुआ है, क्योंकि वह श्रद्धा से नहीं दूसरे को अपमानित करने की मंशा से लगाए गए नारे थे। मोदीभक्त बार-बार कांग्रेस जैसी पार्टियों पर धार्मिक तुष्टिकरण का आरोप लगाते हैं और इस बात को भी स्वीकार नहीं करते कि देश में अल्पसंख्यकों, खासकर मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ दोयम दर्जे का बर्ताव होता है, उन्हें प्रताड़ित किया जाता है। लेकिन मंगलवार को संसद में जिस तरह ओवैसी और बर्क जैसे निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को राम-नाम के साथ चिढ़ाने की कोशिशें हुईं, उससे अनुमान लगाया जा सकता है कि दक्षिण कट्टरपंथी सामान्य अल्पसंख्यकों के साथ किस तरह का व्यवहार करने की मानसिकता रखते हैं। संसद के इस नजारे से भविष्य के संकेतों को समझना कठिन नहीं है। मोदीजी क्या अपनी जुमलेबाजी से हटकर वे एक बार राजधर्म को सही अर्थों में समझने की कोशिश करेंगे। देश अगर मोदी राज को याद करेगा तो इतिहास में यह दिन भी काली स्याही से लिखा जायेगा।