नई दिल्ली। जैसा कि नई मोदी सरकार से उम्मीद की जा रही थी कि वह आर्थिक मोर्चे पर तेजी से काम करेगी उसी तर्ज पर सरकार बढ़ती नजर आ रही है. मोदी सरकार 2.0 ने देशव्यापी आर्थिक सर्वेक्षण कराने का फैसला लिया है. अभी तक रोजगार को लेकर देशव्यापी स्थिति स्पष्ट नहीं होने की असमंजस की स्थिति अब दूर हो जाएगी. पिछले कैबिनेट बैठक में सरकार ने आर्थिक सर्वेक्षण कराने का फैसला लिया था जो अगले 6 महीनों में पूरा हो जाएगा. जानकारी के मुताबिक, पांच सालों में होने वाला आर्थिक सर्वेक्षण अब हर तीन सालों पर किया जाएगा.
वैसे यह सातवां आर्थिक सर्वेक्षण होगा, लेकिन यह सर्वेक्षण अपने आप में अनूठा होगा. पहली बार स्वरोजगार, चाहे वो किसी भी रूप में हो, उसकी गणना की जाएगी और पूरे देश के सामने पेश किया जाएगा. रोजगार को लेकर अमूमन हर सरकार विपक्ष के निशाने पर रहा है. मोदी सरकार 1.0 भी इससे अछूता नहीं रहा. इसलिय मोदी सरकार 2.0 ने इसको लेकर हो रही सियासत को खत्म करने का फैसला लिया. अब हर उस शख्स की आर्थिक गणना होगी जो अपने पैर पर खड़ा है.
अभी तक सरकारी नौकरी को ही रोजगार मानने वाले को पता चल जाएगा कि देश में रोजगार की स्थिति क्या है. साथ ही सरकार के पास भी पुख्ता डाटा आ जाएगा कि कौन और कितने लोग रोजगार से मरहूम हैं. इसके लिए राज्यों से भी डाटा मांगा गया है. आर्थिक सर्वेक्षण को बिल्कुल जनसंख्या गणना की तरह पूरा किया जाएगा.
इस सर्वेक्षण के लिए 12 लाख सर्वेक्षणकर्ताओं को ट्रेनिंग देकर तैयार कर लिया गया है. उनको इसके लिए एक परफोर्मा दिया जाएगा. उसके आधार पर डाटा तैयार कर रोजगार की सही स्थिति के बारे में पता चल पाएगा. 12 लाख सर्वेक्षणकर्ताओं की रिपोर्ट को NSSO के अधिकारी आकलन करेंगे. इसमें राज्य सरकार और MSME के अधिकारियों की भी सहायता ली जाएगी.
जानकारी के मुताबिक, इस आर्थिक सर्वेक्षण से क्रॉप प्रोडक्शन, प्लांटेशन, डिफेंस, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन और कंपलसरी सोशल सिक्योरिटी सर्विसेज को बाहर रखा गया है. इसके लिए हाल ही में दिल्ली में एक प्रशिक्षण कार्यक्रम रखा गया था, जिसमें टॉप अधिकारी शामिल हुए थे. इसी तरह के कार्यक्रम पूरे देश में 6000 जगहों पर हुआ. महत्वपूर्ण बात है कि इस सर्वेक्षण में तकनीक का भरपूर उपयोग किया जाएगा. आपको बता दें कि देश में अभी तक 6 बार आर्थिक सर्वेक्षण और गणना हो चुकी है.