नई दिल्ली। गृह मंत्रालय का चार्ज संभालने के बाद गृह मंत्री अमित शाह मिशन मोड में काम कर रहे हैं. इस कड़ी में पांच जून को ईद की छुट्टी होने के बावजूद वह अपने मंत्रालय पहुंचे और एक के बाद एक बैठकें कर रहे हैं. आज उनकी पहली बैठक गृह सचिव राजीव गौबा और ज्वांइट सेक्रेटरी नक्सल के साथ हुई. सूत्रों के मुताबिक इस मीटिंग में नक्सल समस्या को लेकर चर्चा हुई.
इससे पहले कल यानी मंगलवार को गृह मंत्री ने कश्मीर और अमरनाथ यात्रा को लेकर मीटिंग की थी. पिछले सप्ताह शनिवार को गृह मंत्रालय का चार्ज लेने के बाद से गृह मंत्री अमित शाह अब तक कई मीटिंग कर चुके हैं. अमित शाह के गृह मंत्री के तौर पर गृह मंत्रालय में आज उनका पांचवां दिन है. गृह मंत्री पिछले चार दिन में कश्मीर को लेकर तीन बार बैठक कर चुके हैं.
अमित शाह ने पहले दिन पद संभालते ही, यानी एक जून को गृह मंत्रालय ने जुड़े सभी 22 विभागों का प्रेजेंटेशन लिया. उसके बाद तीन जून को आंतरिक सुरक्षा पर बड़ी बैठक ली. बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ-साथ आईबी चीफ और रॉ चीफ मौजूद थे. बैठक में कश्मीर के साथ सुरक्षा स्थिति पर चर्चा हुई. उसी दिन शाम को वो जम्मू-कश्मीर के गवर्नर सत्यपाल मालिक से मिले.
इसके बाद 4 जून को कश्मीर को लेकर अमित शाह ने एक और बैठक की. बैठक में गृह सचिव, एडिशनल सेक्रेटरी कश्मीर डिवीज़न के अधिकारी मौजूद थे. सूत्रों के मुताबिक इस बैठक में गृह मंत्री ने राज्य में विकास से जुड़े परियोजना की जानकारी के साथ-साथ अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा पर समीक्षा की.
अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर की स्थिति का जायजा लिया
इससे पहले गृह मंत्री अमित शाह को मंगलवार को जम्मू कश्मीर की स्थिति का विस्तृत ब्यौरा दिया गया. भाजपा राज्य विधानसभा में जम्मू क्षेत्र से ज्यादा सीटों के लिए परिसीमन अभियान चलाने के लिए प्रयासरत है. अधिकारियों ने कहा कि गृह मंत्री को इस संवेदनशील राज्य की जमीनी स्थिति से अवगत कराया गया. जम्मू-कश्मीर बीते तीन दशकों से आतंकवाद की चपेट में है और वहां शांति कायम रखने के लिए कड़ी सुरक्षा व्यवस्था रखी गई है.
गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि शाह को सालाना अमरनाथ यात्रा के लिए किये जा रहे सुरक्षा इंतजाम के बारे में जानकारी दी गई. यह यात्रा एक जुलाई से शुरू होनी है. उन्होंने कहा कि शाह जल्द ही इस राज्य का दौरा कर सकते हैं. केन्द्रीय गृह सचिव राजीव गौबा और गृह मंत्रालय में कश्मीर संभाग के वरिष्ठ अधिकारी इस दौरान मौजूद रहे.
यह बैठक ऐसे समय हुई जब प्रदेश भाजपा राज्य में परिसीमन अभियान कराने पर लगी 16 साल की रोक को हटाने के मुद्दे को उठाती रही है. अधिकारियों ने कहा कि हालांकि बैठक में परिसीमन आयोग गठित करने पर कोई चर्चा नहीं हुई. प्रदेश भाजपा द्वारा परिसीमन की मांग के बीच, अधिकारियों ने कहा कि केन्द्र की नई सरकार विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन तथा अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या तय करने के लिए परिसीमन आयोग का गठन कर सकती है.
जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों के बराबर ले जाते हुए, 2002 में तत्कालीन फारूक अब्दुल्ला सरकार ने राज्य संविधान में संशोधन करते हुए 2026 तक परिसीमन आयोग पर रोक लगाई थी. उनके बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने मंगलवार को ट्वीट किया कि परिसीमन पर रोक 2026 तक पूरे देश में लागू है और इसके विपरीत कुछ गलत जानकारी वाले टीवी चैनल इस पर भ्रम पैदा कर रहे हैं, यह केवल जम्मू-कश्मीर के संबंध में रोक नहीं है.
उमर ने आश्चर्य जताया, ‘‘अनुच्छेद 370 और 35 ए को हटाकर जम्मू कश्मीर को अन्य राज्यों की बराबरी पर लाने की बात करने वाली भाजपा अब इस संबंध में जम्मू-कश्मीर के साथ अन्य राज्यों से अलग व्यवहार करना चाहती है.’’ जम्मू कश्मीर के परिसीमन की मांग भाजपा ने पहली बार 2008 में अमरनाथ भूमि विवाद के समय उठाई थी.
माना जाता है कि भाजपा की इस मांग का उद्देश्य जम्मू संभाग के साथ कथित असमानता तथा क्षेत्रीय विषमता को ठीक करना तथा राज्य विधानसभा में सभी आरक्षित श्रेणियों को प्रतिनिधित्व देना है. कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, संविधान में संशोधन को राज्यपाल सत्यपाल मलिक द्वारा निरस्त किया जा सकता है लेकिन इसके लिए इस तरह का अध्यादेश जारी करने के बाद छह महीने के भीतर संसद की सहमति की जरूरत होगी.
जम्मू कश्मीर में भाजपा राज्य के पुनर्गठन का मुद्दा इसलिए उठा रही है ताकि जम्मू को 87 सदस्यीय राज्य विधानसभा में पहले से ज्यादा संख्या में सीटें मिलें. फिलहाल, कश्मीर क्षेत्र में 46, जम्मू क्षेत्र में 37 और लद्दाख में चार सीटें हैं.