लखनऊ। लोकसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक परिणाम ना मिलने के बाद सपा-बसपा गठबंधन टूटने की कगार पर पहुंच चुका है, मायावती ने भले ये कहा हो, कि सपा-बसपा के रिश्ते बने रहेंगे, लेकिन उन्होने विधानसभा उपचुनाव में अकेले उतरने का ऐलान कर अपनी मंशा साफ कर दी है, अब दोनों पार्टियां एकला चलो रे की राह पर है। कहा जा रहा है कि जल्द ही गठबंधन तोड़ने का भी ऐलान हो जाएगा।
यादवों ने वोट नहीं दिया
बसपा प्रमुख मायावती ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में दावा करते हुए कहा कि यादवों ने बसपा उम्मीदवारों को वोट नहीं दिया, इस वजह से गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या गठबंधन सिर्फ इस वजह से टूट रहा है, अगर आंकड़ों पर नजर डालियेगा, तो आपको कुछ और ही दिखेगा।
बसपा ने जीती सीटें
कहा जा रहा है कि लालगंज, घोषी और गाजीपुर सीट बसपा ने यादव वोट बैंक के सहारे ही जीती, फिर मायावती गठबंधन क्यों तोड़ना चाहती है, असली वजह क्या है, दरअसल राजनीतिक गठबंधन कभी भी स्थायी नहीं माने जाते हैं, ऐसे में सपा-बसपा जैसे दो कट्टर विरोधी पार्टियां अगर आपस में गठबंधन करती है, तो ये गठबंधन स्थायी हो ही नहीं सकता ।
पहले ही कर चुकी अलग होने का फैसला
भले ही माया-अखिलेश एक लंबे अर्से तक साथ चलने का दावा कर रहे थे, लेकिन राजनीतिक जानकार पहले दिन से दावा कर रहे थे, कि ये गठबंधन टिकाऊ नहीं है, जिस दिन लोकसभा चुनाव परिणाम घोषित हुए, बीजेपी नेता बार-बार इसी बात का जिक्र कर रहे थे, कि किसी भी समय तलाक का ऐलान हो सकता है, क्योंकि गठबंधन का असर तो दिखा ही नहीं।
ये है गठबंधन टूटने की असली वजह
सूत्रों की मानें तो गठबंधन करते समय ही ये तय हो गया था कि लोकसभा चुनाव मायावती के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, जबकि विधानसभा चुनाव सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की अगुवाई में होगा, गठबंधन के ऐलान के समय प्रेस कांफ्रेंस में इशारों ही इशारों में अखिलेश ने मायावती को प्रधानमंत्री उम्मीदवार मान लिया था, ऐसे में अगर विधानसभा चुनाव तक गठबंधन रहा, तो बसपा सुप्रीमो को अखिलेश को यूपी का सीएम मानना पड़ता, इसलिये पहले ही उन्होने रास्ता अलग करने के लिये नई सुर छेड़ दी है।