लखनऊ। लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद सपा-बसपा गठबंधन टूट गया है. बीएसपी प्रमुख मायावती ने समाजवादी पार्टी पर आरोप लगाया है कि सपा अपना काडर वोट भी नहीं ले सकी है. इसलिए यह कहना मुश्किल होगा कि सपा के लोगों ने बीएसपी को कितने वोट दिए होंगे. उन्होंने कहा कि सपा को यादव बाहुल्य क्षेत्रों में भी वोट नहीं मिला है. उधर अखिलेश यादव ने मायावती के फैसले पर कहा, जिन्हें जाना है वह जा सकते है. उप चुनाव में सपा अकेले चुनाव लड़ेगी. ऐसे में अब यह सवाल भी उठ रहे हैं किआखिर मायावती ने क्यों तोड़ा गठबंधन? क्या मायावती ने समाजवादी पार्टी से पुराना बदला ले लिया है?
दरअसल ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है क्यों कि मुलायम सिंह यादव ने बीएसपी से गठबंधन का विरोध किया था और लोकसभा चुनाव के नतीजे देखें तो सपा-बसपा गठबंधन का सीधा फायदा बीएसपी को हुआ और नुकसान समाजवादी पार्टी को बीएसपी शून्य से 10 सीटों पर पहुंच गई और सपा 5 सीटें ही जीत पाई. इस पूरे गठबंधन में मायावती सीनियर और अखिलेश जूनियर पार्टनर की भूमिका में रहे
गठबंधन में मायावती रहीं सीनियर
12 जनवरी 2019 को लखनऊ में सपा बसपा के गठबंधन का ऐलान होता है. गठबंधन और सीटों का ऐलान मायावती करती हैं. पूरी प्रेस वार्ता में मायावती गेस्ट हाऊस कांड का नाम लेना नहीं भूलती हैं. अखिलेश यादव पीसी में मायावती के बाद बोलते हैं. 38-38 सीटों पर दोनों दल चुनाव लड़ने का ऐलान करते हैं. सपा बसपा 2 सीटें अमेठी और रायबरेली कांग्रेस के लिए छोड़ते हैं और 2 सीटें आरएलडी के लिए. आरएलडी 2 सीटों पर गठबंधन में शामिल होने को तैयार नहीं थी, वो कम से कम 3 सीटें मांग रही थी.
अखिलेश ने कदम कदम पर किया समझौता
मायावती ने अपने कोटे से आरएलडी को सीट देने से मना कर दिया. मायावती के इंकार के बाद अखिलेश यादव ने अपने कोटे से 1 और सीट मथुरा आरएलडी को दी. इस प्रकार बीएसपी – 38, सपा – 37, RLD- 3 सीटों पर चुनाव लड़ी
सीटों की संख्या के बाद अब सीटों के चयन पर सपा-बसपा ने काम करना शुरू किया, इसमें भी बीएसपी प्रमुख मायावती अपर हैंड रहीं. सभी शहरी सीटें मायावती ने समाजवादी पार्टी के कोटे में दे दी. लगभग 10 ऐसी सीटें जहां पर बीजेपी को हराना नामुमकिन होता है.
माया ने सपा प्रत्याशी के लिए नहीं की अलग रैली
मायावती ने अखिलेश यादव को वाराणसी, लखनऊ, गाज़ियाबाद, कानपुर, झांसी, गोरखपुर, अयोध्या, इलाहाबाद, बरेली, उन्नाव जैसी शहरी सीटें दी, यानि इस प्रकार से अखिलेश यादव सिर्फ 27 सीटों पर मजबूती से लड़ पाए.सीटों के बंटवारे के बाद अब चुनाव प्रचार की बारी आई, तो अखिलेश-मायावती ने एक साथ लगभग 19 संयुक्त रैलियां की. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने संयुक्त रैलियों के अतिरिक्त बीएसपी के 30-32 प्रत्याशियों के लिए अलग से अकेले चुनावी रैलियां की. बीएसपी अध्यक्ष मायावती ने सपा के किसी भी प्रत्याशी के लिए अलग से कोई भी चुनावी रैली नहीं की.
डिंपल की हार के पीछे दलित वोटों का बीजेपी के शिफ्ट
लोकसभा चुनाव के नतीजों में मायावती यादव बाहुल्य सीटें जीतीं लेकिन अखिलेश यादव दलित बाहुल्य सीटें हार गए. मायावती गाज़ीपुर, जौनपुर, घोसी, लालगंज, अंबेडकरनगर जैसी यादव बाहुल्य सीटें जीत गईं. अखिलेश यादव हाथरस, हरदोई, कौशाम्बी, फूलपुर, बाराबंकी, बहराइच, रॉबर्ट्सगंज जैसी दलित बाहुल्य सीटें हार गए. कहा ये भी जा रहा है कि कन्नौज में अखिलेश यादव की पत्नी डिम्पल यादव की हार के पीछे दलित वोट बैंक का बीजेपी की तरफ शिफ्ट होना है. 2014 में बीएसपी अलग चुनाव लड़ी थी तो कन्नौज में दलित वोट बीएसपी के पास गया था लेकिन 2019 में साइकिल निशान होने के कारण दलित वोट बीजेपी के पास चला गया. जिस वजह से कन्नौज से डिम्पल यादव चुनाव हार गईं. यहां कन्नौज की रैली में डिम्पल यादव ने बीएसपी अध्यक्ष मायावती के पैर छुए थे. कन्नौज में डिम्पल यादव 12,353 वोटों से चुनाव हार गईं.
यादव वोट बंटवारे ने सपा को हराया
जानकार ऐसा मानते हैं कि बदायूं और फिरोज़ाबाद में यादव वोटों के बंटवारे ने सपा को हरा दिया. फिरोज़ाबाद में अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव ने यादव वोट काटा. फिरोज़ाबाद में सपा के महासचिव रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव चुनाव लड़ रहे थे. शिवपाल यादव भी फिरोज़ाबाद से लोकसभा चुनाव लड़े. यादव वोटों में बंटवारे से फिरोज़ाबाद सीट पर बीजेपी की जीत हुई. फिरोज़ाबाद में सपा के अक्षय यादव 28,781 वोटों से चुनाव हार गए, इसी सीट पर शिवपाल यादव को 91,869 वोट मिले. यानि ये सीट सपा शिवपाल यादव के कारण हार गई. बदायूं में सपा के धर्मेन्द्र यादव 18,454 वोटों से चुनाव हार गए, यहां पर गुन्नौर विधानसभा में यादव वोटों का बंटवारा हुआ. यादव वोटों में बंटवारे से ये सीट सपा हार गई.
मायावती ने क्यों तोड़ा गठबंधन?
जानकार मानते हैं कि मायावती ने 10 सीटें जीतने के बाद सपा का जनाधार कम करने के लिए यह फैसला लिया है. क्योंकि लोकसभा चुनाव में 10 सीटे लाने के बाद अब बीएसपी ने फैसला किया है कि वह पहली बार उपचुनाव लड़ेगी. ऐसा बताया जा रहा है कि मायावती की निगाहें 2022 में सीएम पद पर है. ऐसे में अगर इन उपचुनाव में अखिलेश से गठबंधन रहता तो अखिलेश को यूपी का सीएम चेहरा बनाना पड़ता, क्योंकि अखिलेश ने अनौपचारिक तौर पर 2019 में मायावती को पीएम चेहरा माना था.
सपा का मुस्लिम वोट बैंक को तोड़ना चाहती हैं माया
2019 में मोदी के बंपर जीत के बाद मायावती के पास यूपी विधानसभा चुनाव के अलावा कहीं और फोकस करने की कोई गुंजाईश नहीं बची है. ऐसा बताया जा रहा है कि मायावतीअपने भतीजे आकाश आनंद को मायावती विधानसभा चुनाव में लॉच कर सकती हैं. हालांकि मायावती ने गठबंधन पर परमानेंट ब्रेक ना लगने की बात भी कही है. दरअसल मायावती मुस्लिमों में ये संदेश नहीं देना चाहती हैं कि गठबंधन उन्होंने तोड़ दिया है.
क्यों अहम है यूपी के उपचुनाव
यूपी में 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं. इनमें रामपुर, लखनऊ कैंट, प्रतापगढ़, गोविंदनगर (कानपुर), गंगोह (सहारनपुर), टूंडला (सु), जलालपुर (अंबेडकरनगर), इगलास (अलीगढ़), बलहा (बहराइच), जैदपुर (बाराबंकी), मानिकपुर-चित्रकूट 12 वीं सीट मुज़फ्फरनगर ज़िले की मीरापुर विधानसभा सीट पर उप चुनाव संभव हो सकता है, क्योंकि यहां से बीजेपी के टिकट पर विधायक बने अवतार भड़ाना 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी थे. दलबदल कानून के कारण अवतार भड़ाना की सदस्यता खत्म हो सकती है.
उपचुनाव से साफ होगी 2022 की तस्वीर
यूपी में होने वाले उपचुनाव के नतीजे 2022 की तस्वीर साफ करेंगे. सपा बसपा अलग होने के बाद किस स्थिति में रहेंगे, ये भी उपचुनाव के नतीजे तय करेंगे. बीजेपी के लिए भी ये चुनाव महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि ये चुनाव मोदी के नाम पर नहीं होगा. सपा बसपा इन चुनावों के जरिए अपनी वापसी की कोशिश करेंगे.
सपा बसपा गठबंधन क्यों फेल रहा है?
सपा बसपा गठबंधन के फेल होने का कारण जानकार यह बताते हैं कि सपा बसपा ने जातीय समीकरण पर काम किया, सपा बसपा दलित-यादव-मुस्लिम के समीकरण वाले आंकड़ों में उलझ गई. दोनों दलों ने बूथ पर काम नहीं किया. ऐसा बताया जा रहा है कि दोनों पार्टियों का चुनावी मैनेजमेंट ठीक नहीं था. बूथ स्तर पर सपा बसपा ने साथ काम नहीं किया. बीजेपी ने गोरखपुर-फूलपुर-कैराना के नतीज़ों के बाद बूथ स्तर पर काम शुरू किया. बीजेपी के पास गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलित पूरी तरह से आ गया. बीजेपी को सवर्णों का पूरा वोट मिला. बीजेपी ने वोटर लिस्ट पर काम किया और सपा बसपा जातीय अंकगणित के जाल में उलझी रही. सपा बसपा के कई वरिष्ठ नेता नाराज़ थे