झूठा आरोप लगा कर अखिलेश पर ठीकरा फोड़ रहीं मायावती
मायावती खुद अपना वोट नहीं ट्रांसफर करा पायी और आरोप लगाया अखिलेश पर
राजेश श्रीवास्तव
लखनऊ । चुनाव आते ही यूपी मंे सपा-बसपा का गठबंधन टूट जायेगा, भाजपा के इस ऐलान को खुद मायावती इतनी जल्दी चरितार्थ कर देंगी, इस पर किसी को विश्वास नहीं था। गठबंधन टूटना तो तय था लेकिन जिस तरह के झूठे आरोप लगा कर मायावती ने गठबंधन धर्म तोड़ा और अखिलेश यादव पर आरोप मढ़े उससे साफ हो जाता है कि मायावती पर लंबे समय तक किसी के साथ राजनीति न करने का जो आरोप लगता है, वह सच होते दिख रहा है।
दिलचस्प तो यह है कि मायावती के इतने सख्त रुख के बावजूद अखिलेश ने अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि अभी मुझे मामले की जानकारी नहीं है। हमें चुनाव जीतने के लिए जमीन पर काम करना होगा। मायावती ने बैठक में कहा कि यादव वोट उन्हें ट्रांसफर नहीं हुआ। यह कोरा झूठ है। सहारनपुर जैसी सीट पर भी मायावती को पिछली बार
से दूना वोट प्रतिशत हासिल हुआ। सच तो यह है कि मायावती अपना वोट बैंक आजमगढ़, अमेठी, रायबरेली, कन्नौज, फिरोजाबाद, मैनपुरी जैसे सपा के गढ़ में ट्रांसफर नहीं करा पायीं। अगर अमेठी में ही मायावती अपना वोट बैंक दिलातीं तो राहुल गांधी तकरीबन ढाई हजार वोट से चुनाव जीत जातते। कन्नौज में डिंपल यादव चुनाव जीत जातीं।
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली कहावत पर अमल करते हुए मायावती ने अखिलेश यादव पर आरोप लगा डाला। जबकि यह आरोप सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की तरफ से लगने थ्ो। शायद मायावती को इस बात का एहसास भी हो गया था इसीलिए उन्होंने खुद पहले बाजी मारी और अखिलेश यादव पर ठीकरा फोड़ते हुए 11 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में अकेले चुनाव लड़ने का न केवल ऐलान किया बल्कि आने वाले विधानसभा चुनावों में सभी 4०3 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारियों का आदेश भी दे दिया। बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि गठबंधन से चुनाव में अपेक्षित परिणाम नहीं मिले हैं। लिहाजा, अब गठबंधन की समीक्षा की जाएगी। मायावती ने यहां तक कह दिया कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अपनी पत्नी और भाई की भी सीट नहीं बचा पाए।
मायावती ने साफ कर दिया अखिलेश अभी बबुआ ही हैं
राजनीति के समीकरणों में अखिलेश यादव वास्तव में बबुआ ही साबित हुए हैं। यह आज के मायावती के पैतरों से भी साफ हो गया है। लोकसभा चुनाव में गठबंधन को मिली करारी हार की समीक्षा के लिए आयोजित दिल्ली की बैठक में मायावती ने जिस तरह के फैसले का ऐलान किया और अखिलेश यादव ने जो रिऐक्शन दिया उससे साबित हो गया कि अखिलेश में अभी निर्णय लेने की क्षमता नहीं है। अखिलेश ने पहली बार कोई गलती नहीं की है।
एक्सीडेंटली मुख्यमंत्री पद पाने वाले अखिलेश यादव लगातार अपिरिपक्व निर्णय ले रहे हैं। जिसके चलते मुलायम और शिवपाल के संघर्षों से खड़ी की गयी समाजवादी पार्टी अब यादव पट्टी में ही हार का स्वाद चखने लगी है। समाजवाद के पुरोधाओं को कभी भरोसा नहीं रहा होगा कि मैनपुरी, कन्नौज, फिरोजाबाद जैसी पट्टी में सपा को मुंह की खानी पड़ेगी। लेकिन अखिलेश ने मुलायम सिंह को दरकिनार कर पार्टी पर कब्जा तो कर लिया। लेकिन वह उसे खादी पानी नहीं दिला सके। वह ऐसे बेटे के रूप में याद किये जायेंगे जो पिता की विरासत को भी नहीं संभाल सका। उन्होंने पहले शिवपाल यादव को पार्टी से बाहर किया। कांग्रेस से समझौता किया। हार का स्वाद चखा। जिन नेताओं की 5० समर्थकों की हैसियत नहीं थी उन्हें अहम जिम्मेदारी थमा दी।
जिस ओर जवानी चलती है उस ओर जमाना चलता है, के नारों से उत्साहित अखिलेश यह नहीं समझ पाये कि जवानी के साथ अनुभव का तालमेल भी जरूरी होता है। उन्होंने अपने पिता मुलायम और चाचा शिवपाल की सीख और नसीहत को भी दरकिनार कर दिया। सबको परे रखते हुए उन्होंने कांग्रेस से समझौता किया। फिर तोड़ा। और आखिर में जिन मायावती से मुलायम सिंह लड़कर ऊर्जा हासिल करते रहे। जिनका विरोध कर सत्ता हासिल करते रहे। उन्हीं मायावती के साथ स्वाभिमान छोड़कर वह झुकते चले गये और जो तुमको हो पसंद वही बात करंेगे की तर्ज पर समझौता कर डाला। बदले में क्या मिला, सपा का अपना वोट बैंक भी सरक गया। मायावती को ० से दस सीटों पर पहुंचाने का श्रेय अखिलेश यादव को ही दिया जाना चाहिए। लेकिन खुद अपनी पत्नी और भाई को भी नहीं बचा पाये।