नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त मिलने के बाद अब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के राष्ट्रीय दल का दर्जा गंवाने की संभावना है. उल्लेखनीय है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में मिले भारी पराजय के बाद सीपीआई, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) राष्ट्रीय दल का अपना दर्जा गंवाने की स्थिति का सामना कर रही थी.
हालांकि, चुनाव आयोग द्वारा अपने नियमों में संशोधन करने पर इन पार्टियों को 2016 में राहत मिल गई थी, जब उसने यह प्रावधान किया कि वह राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय पार्टी के दर्जे की समीक्षा पांच साल के बजाय हर 10 साल पर करेगा. सीपीआई महासचिव एस सुधाकर रेड्डी ने कहा, ”चुनाव आयोग के मौजूदा मानदंड के मुताबिक हम राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खोने के खतरे का सामना कर रहे हैं. राष्ट्रीय पार्टी के हमारे दर्जे के बारे में वे फैसला करेंगे. मुझे आशा है कि चुनाव आयोग सकारात्मक कदम उठाएगा.”
हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा नहीं रहने से पार्टी के कामकाज पर असर नहीं पड़ेगा. चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के मुताबिक किसी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता तब मिल सकती है जब लोकसभा या विधानसभा चुनावों में चार या उससे अधिक राज्यों में उसके उम्मीदवारों ने कम से कम छह फीसदी वोट पाएं हो. साथ ही, लोकसभा में उसके कम से कम चार सदस्य हों.
उसके पास लोकसभा की कुल सीटों का कम से कम दो फीसदी भी होना चाहिए और उसके सांसद कम से कम तीन राज्यों से हों. साथ ही, वह कम से कम चार राज्यों में राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा रखती हो. चुनाव आयोग ने 15 मार्च को एक अधिसूचना जारी कर सात राष्ट्रीय दल बताए थे. वे हैं तृणमूल कांग्रेस, बीजेपी, बसपा, सीपीआई, सीपीआईएम, कांग्रेस और एनसीपी.
रेड्डी ने पार्टी में युवाओं को लाने की जरूरत का जिक्र करते हुए कहा, ”वाम के हाशिये पर जाने का देश के भविष्य पर बहुत गंभीर प्रभाव पड़ेगा. इसलिए सीपीआई की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने अपना यह रुख दोहराया है कि वक्त की दरकार है कि कम्युनिस्ट पार्टियों का फिर से एकीकरण किया जाए और नये सिरे से रणनीति बनाई जाए.”