नई दिल्ली। मौजूदा सियासी तस्वीर में नवीन पटनायक जैसा विनम्र राजनेता अपवाद की तरह नजर आता है. साथ ही ओडिशा ने उस शख्स को इतने लंबे समय तक मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार किया जिसने शुरुआत में अपने जीवन का अधिकांश समय राज्य से बाहर बिताया.
कह सकते हैं कि ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक के बेटे होने के नाते शायद उन्हें मदद मिली. बीजू पटनायक वायु सेना के पायलट थे और स्वतंत्रता संघर्ष में शामिल रहे वह उद्योगपति और फिर ओडिशा के मुख्यमंत्री बने.
एक राजनेता के रूप में अपने चार दशक लंबे करियर में, उन्होंने ओडिशा जैसे पिछड़े राज्य को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वह दो बार मुख्यमंत्री चुने गए. हालांकि निमोनिया के कारण 81 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई और इस तरह से ओडिशा के राज्य की राजनीति में बड़ा शून्य नजर आने लगा. तब जनता दल में उनके सहयोगियों ने उनकी लोकप्रियता को पहचाना और ओडिशा की राजनीति में आई रिक्तता को भरने के लिए उनके बेटे को लाया गया और यहीं से नवीन पटनायक के राजनीति में आने की जमीन तैयार हुई.
नवीन पटनायक का राजनीति में आना अस्वाभाविक था. दून स्कूल और सेंट स्टीफेंस कॉलेज से पढ़ाई के बाद नवीन पटनायक ने कुछ दिनों तक दिल्ली के द ओबेराय के परिसर में ‘साइकेडेल्ही’ नामक एक बुटीक चलाया. उन्हें संगीत के शौकीन के तौर पर भी जाना जाता है. बहरहाल, पिता की मृत्यु के बाद हमेशा जींस-टी शर्ट में दिखने वाले शख्स को राजनीति में आना पड़ा.
उस दौरान ओडिशा की जनता को उनके बारे में कोई खास जानकारी नहीं थी. ओडिशा में सिर्फ उनका इतना ही परिचय था कि वह बीजू पटनायक के बेटे हैं. एक तरह से वह राजनीति में अनजान चेहरे की तरह थे. बाकी इतिहास है. वह पहली बार अस्का से लोकसभा के लिए चुने गए थे, जो 1997 में उनके पिता की मृत्यु के बाद खाली हो गया था.
नवीन पटनायक सांसद चुने जाने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री बने. एक साल बाद उन्होंने जनता दल का नाम बदलकर बीजू जनता दल (BJD) कर दिया. विधानसभा चुनाव जीतने के बाद वह 2000 में मुख्यमंत्री बने. उन्नीस साल बाद, वह बीजेपी और कांग्रेस से जूझते हुए अपने दम पर एक और कार्यकाल संभालने जा रहे हैं. इस बार वह पांचवीं बार ओडिशा के सीएम पद की शपथ लेंगे.