भारतीय टीम जब 1983 में विश्व कप (Cricket World Cup) खेलने पहुंची तो कोई भी उसे जीत का दावेदार नहीं मान रहा था. वेस्टइंडीज, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड के सामने टीम इंडिया को सेमीफाइनल का दावेदार भी नहीं माना जा रहा था. ऐसे में वह कपिल देव (Kapil Dev) की प्रेरक और सकारात्मक कप्तानी ही थी, जिसने भारतीय टीम (Team India) में जीत का जज्बा पैदा किया. उनकी 175 रन की पारी को तो शायद भारतीय वनडे इतिहास की सबसे बेहतरीन कप्तानी पारी कहा जा सकता है. यानी, वह कपिल देव की कप्तानी ही भारतीय टीम के चैंपियन बनने में सबसे निर्णायक पहलू था. सिर्फ भारत ही नहीं, जिन भी टीमों ने विश्व कप जीता, तब उनके कप्तानों की निर्णायक भूमिका रही. अपनी टीमों को विश्व चैंपियन बनाने वाले ऐसे ही 8 अन्य कप्तान ये हैं.
क्लाइव लॉयड की दबंगई वाली कप्तानी
वेस्टइंडीज के क्लाइव लॉयड (Clive Lloyd) दुनिया के पहले क्रिकेटर हैं, जिन्हें विश्व कप की ट्रॉफी उठाने का मौका मिला. वेस्टइंडीज ने उनकी कप्तानी में ही 1975 में पहला विश्व कप जीता था. लॉयड ने इस विश्व कप के फाइनल में 85 गेंदों पर 102 रन धुन दिए थे. वेस्टइंडीज ने ही अगला विश्व कप भी जीता. इस बार भी कप्तान लॉयड ही थे. लॉयड खिलाड़ी से ज्यादा कप्तान के रूप में प्रभावी थे. वे मैदान पर किसी दबंग की तरह प्रवेश करते थे. कहते हैं कि मैदान पर उनकी बॉडी लैंग्वेज ही विरोधियों का आत्मविश्वास हिलाने के लिए काफी होती थी.
एलन बॉर्डर ने ऑस्ट्रेलिया को बनाया चैंपियन
ऑस्ट्रेलिया की टीम हमेशा ही दुनिया की ताकतवर टीमों में शामिल रही है. लेकिन उसे विश्व चैंपियन बनने के लिए चौथे विश्व कप तक इंतजार करना पड़ा. ऑस्ट्रेलिया को चैंपियन बनाने का बहुत बड़ा श्रेय कप्तान एलन बॉर्डर (Allan Border) को दिया जाता है. ऑस्ट्रेलिया की टीम के कई बड़े दिग्गजों ने 1980 के दशक के शुरुआती सालों में संन्यास ले लिया. इससे टीम अचानक कमजोर हो गई. युवा खिलाड़ियों की टीम को एलन बॉर्डर ने संभाला. वे 1987 के विश्व कप में ज्यादा रन नहीं बना सके. ऑस्ट्रेलिया के तीन खिलाड़ियों क्रेग मैक्डरमट, डेविड बून और ज्योफ मार्श ने शानदार प्रदर्शन किया. जब ऑस्ट्रेलिया चैंपियन बना तो इन तीनों खिलाड़ियों का इंटरनेशनल करियर तीन साल से भी कम था. दुनिया ने इसके लिए बॉर्डर की तारीफ की, जिन्होंने इन युवा खिलाड़ियों के दम पर विश्व कप जीता.
इमरान खान की करिश्माई कप्तानी
पाकिस्तानी टीम की छवि हमेशा ऐसी रही है, जिसमें बड़े दमदार खिलाड़ी हैं, लेकिन वे बतौर टीम प्रदर्शन नहीं कर पाते. 1980-90 के दशक में भी कुछ ऐसा ही था. टीम दो गुटों में बंटी रहती थी. इसी विवाद से तंग आकर इमरान खान (Imran Khan) ने संन्यास तक ले लिया. लेकिन तब के पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने उन्हें संन्यास का फैसला बदलने के लिए कहा. इमरान मैदान पर लौट आए. उन्होंने 1992 के विश्व कप में पाकिस्तान को शानदार जीत दिलाई. 1992 की पाकिस्तानी टीम को पूरी तरह इमरान खान की टीम कहा गया. उन्होंने इस टूर्नामेंट में जिस तरह से वसीम अकरम, वकार यूनुस, इंजमाम उल हक जैसे युवा खिलाड़ियों का इस्तेमाल किया, वह काबिलेतारीफ था. आज भी उन्हें दुनिया के सर्वश्रेष्ठ कप्तानों में गिना जाता है.
अर्जुन रणतुंगा ने खेल का रुख बदल दिया
1996 में श्रीलंका ने विश्व कप जीता. श्रीलंका का चैंपियन बनने से ज्यादा उसके खेल की चर्चा रही. श्रीलंका के कप्तान अर्जुन रणतुंगा (Arjuna Ranatunga) ने 30 गज के सर्कल के नियम का फायदा उठाने के लिए ऑलराउंडर सनथ जयसूर्या और विकेटकीपर कालूवितर्णा से ओपनिंग कराई. रणनीति साफ थी- शुरुआती 15 में अधिक से अधिक रन बनाओ, भले ही कितने ही विकेट गिर जाएं. तीसरे क्रम के बल्लेबाज गुरुसिंघा को भी ऐसे ही निर्देश थे. उनकी इस रणनीति ने ना सिर्फ श्रीलंका को चैंपियन बनाया, बल्कि इसने विश्व क्रिकेट को भी बदल दिया. इसके बाद से ही शुरुआती 15 ओवर खेल का सबसे अहम हिस्सा हो गया.
स्टीव वॉ की दबंगई और चतुराई वाली कप्तानी
साल 1999 में ऑस्ट्रेलिया ने दूसरी बार खिताब जीता. यह वो वक्त था, जब दुनिया में ऑस्ट्रेलिया का दबदबा था. लेकिन दक्षिण अफ्रीका और पाकिस्तान की टीमें भी बेहद मजबूत थीं. लेकिन यह स्टीव वॉ (Steve Waugh) कप्तानी ही थी, जिसने इन टीमों में फर्क पैदा किया. दक्षिण अफ्रीका पर चोकर का दाग सही मायने में इसी वर्ल्ड कप में लगा, जब वह ऑस्ट्रेलिया से हारा. इस विश्व कप का एक किस्सा बड़ा मशहूर है. ऑस्ट्रेलिया की टीम दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ बेहद दबाव में थी. दबाव के इन पलों में ही स्टीव वॉ को जीवनदान मिल गया. हर्शेल गिब्स ने उनका कैच छोड़ दिया. तब स्टीव वॉ उनके पास गए और बोले, ‘तुमने कैच नहीं, मैच टपका दिया है.’ वॉ की यह बात सही साबित हुई. स्टीव वॉ ने शतक लगाया और दक्षिण अफ्रीका हार गया.
रिकी पोंटिंग ने भी बनाया डबल
ऑस्ट्रेलिया ने 2003 और 2007 में भी विश्व कप जीते. इन दोनों ही विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया के कप्तान रिकी पोंटिंग (Ricky Ponting) थे. पंटर के नाम से मशहूर पोंटिंग ने 2003 के विश्व कप के फाइनल में भारत के खिलाफ शतक बनाया था. इससे उनकी खेलने की शैली का अंदाजा लगाया जा सकता है. हालांकि, जितने भी कप्तानों ने विश्व कप जीते, उनमें से पोंटिंग की कप्तानी को सबसे कम अंक दिए जाएंगे. इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि 2000 के दशक में ऑस्ट्रेलिया की टीम बेहद मजबूत थी. एडम गिलक्रिस्ट, ग्लेन मैक्ग्रा, शेन वार्न, मैथ्यू हेडन जैसे खिलाड़ियों की टीम के सामने सभी दहशत खाते थे. 2003 के विश्व कप में भारत के कप्तान रहे सौरव गांगुली भी कह चुके हैं कि उनकी टीम फाइनल में अपने से बेहतर टीम से हारी थी.
एमएस धोनी का मिडास टच
एमएस धोनी (MS Dhoni) उन क्रिकेटरों में से एक हैं, जिन्हें सिर्फ भारत ही नहीं, दुनिया के बेहतरीन कप्तानों में से एक माना जाता है. यह खिलाड़ी बेहद शांत और सौम्य है, लेकिन अपनी रणनीति से हमेशा चौंकाता है. 2011 के विश्व कप फाइनल में ही जब भारत का तीसरा विकेट गिरा तो इनफॉर्म युवराज सिंह की जगह कप्तान धोनी खुद बैटिंग करने चले आए. उनका यह फैसला हर किसी को चौंकाने वाला था, लेकिन धोनी तो धोनी हैं. उन्होंने इस फैसले को सही साबित करते हुए 97 रन बनाए और विनिंग सिक्स लगाकर मैदान से लौटे. धोनी की कप्तानी के बारे में ‘मिडास टच’ बड़ा फेमस है. कहा जाता है कि उन्होंने जिस खिलाड़ी पर भरोसा जताया, या जो फैसला लिया, उसका सफल या सही साबित होना तय है.
माइकल क्लार्क, फाइनल में बनाया सबसे बड़ा स्कोर
माइकल क्लार्क (Michael Clarke) विश्व कप जीतने वाले ऑस्ट्रेलियाई कप्तानों में से सबसे डिफेंसिव कहे जा सकते हैं. इसके बावजूद उन्होंने अपनी टीम की लीगेसी को दमदारी से आगे बढ़ाया. क्लार्क ने रिकी पोंटिंग के बाद टीम की कमान संभाली. क्लार्क की कप्तानी में ऑस्ट्रेलिया का दबदबा पहले की तरह बरकरार रहा. यही कारण था कि जब वे 2015 के वर्ल्ड कप से पहले चोटिल हो गए, तब भी ऑस्ट्रेलिया ने उन्हें कप्तान बनाए रखा. वे विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया के शुरुआती दो मैचों में खेलने नहीं उतरे. लेकिन एक बार जब वे खेलने उतरे तो टीम को फ्रंट से लीड किया. क्लार्क ने फाइनल में ऑस्ट्रेलिया की ओर से सबसे अधिक 74 रन बनाए और अपनी टीम को चैंपियन बनाया.