वे सवाल जिनके जवाब जल्द नहीं मिले तो भारत के लिए विश्व कप की राह आसान नहीं होने वाली

इंग्लैंड की धरती पर 30 मई से शुरू हो रहे एक दिवसीय क्रिकेट विश्व कप के लिए सभी टीमों की तैयारियां अंतिम दौर में पहुंच चुकी हैं. भारतीय टीम इसी हफ्ते इंग्लैंड पहुंच रही है. 25 और 28 मई को न्यूजीलैंड और बांग्लादेश से अभ्यास मैच के एक हफ्ते बाद पांच जून को विश्व कप में उसका पहला मुकाबला दक्षिण अफ्रीका से होना है.

विश्व कप के लिए जिस 15 सदस्यीय टीम का चयन किया गया है उसे लेकर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है. सौरव गांगुली और सचिन तेंदुलकर जैसे दिग्गजों ने इसे एक मजबूत टीम करार दिया है. इसके बावजूद इस भारतीय टीम में कुछ कमियां साफ़ देखी जा सकती हैं.

जब से विश्व कप के लिए टीम का चयन हुआ है तब से सबसे बड़ा सवाल यही बना हुआ है कि नंबर चार पर कौन बल्लेबाजी करने उतरेगा. 2015 विश्वकप के बाद से अब तक भारतीय टीम में चौथे क्रम पर 10 से ज्यादा बल्लेबाजों को आजमाया जा चुका है. लेकिन, कोई भी इस क्रम पर ऐसी बल्लेबाजी नहीं कर सका जिससे कि उस पर आंख मूंदकर भरोसा किया जा सके.

इस विश्वकप में चयनकर्ताओं ने हरफनमौला खिलाड़ी विजय शंकर, केएल राहुल और दिनेश कार्तिक को इस स्थान के लिये चुना है. विजय शंकर की बात करें तो इस समय उनकी फॉर्म सबसे बड़ी चिंता का विषय है. वे इस बार आईपीएल में भी उम्मीदों के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाये. साथ ही उन्हें विश्व कप जैसे बड़े टूर्नामेंट में खेलने का अनुभव भी नहीं है.

कुछ क्रिकेट विश्लेषकों का मानना है कि केएल राहुल की आईपीएल फॉर्म को देखते हुए चौथे नंबर पर बल्लेबाजी के लिए उन्हें मौका दिए जाने की संभावना विजय शंकर से ज्यादा है. हमेशा ऊपरी क्रम पर खेलने वाले राहुल के चौथे नंबर पर उतरने की उम्मीद इसलिए भी है कि पहले, दूसरे और तीसरे क्रम पर शिखर धवन, रोहित शर्मा और कप्तान विराट कोहली के बाद उनके लिए यही क्रम बचता है. लेकिन, केएल राहुल के मामले में परेशानी यह है कि एक तो उन्हें विश्व कप का अनुभव नहीं है, दूसरा चौथे क्रम पर उन्होंने न के बराबर ही बल्लेबाज की है. ऐसे में विश्व कप में इस क्रम पर उनके कामयाब होने को लेकर आशंकाएं बनी हुई हैं.

बहरहाल, विश्वकप में अगर विजय शंकर, केएल राहुल और दिनेश कार्तिक तीनों ही चौथे क्रम को नहीं संभाल सके तो फिर एकमात्र विकल्प पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ही बचते हैं. लेकिन, टीम मैनेजमेंट की दुविधा यह है कि अगर वह धोनी को चौथे नंबर पर बल्लेबाजी करने भेजता है और वे जल्द आउट हो जाते हैं तो फिर कोई ऐसा नहीं बचता जिस पर पारी को लंबा खींचने का भरोसा किया जा सके.

बल्लेबाजी में महेंद्र सिंह धोनी की भूमिका को लेकर पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर एक साक्षात्कार में कहते भी हैं, ‘मुझे लगता है कि यह बहुत महत्वपूर्ण होगा क्योंकि हमारे पास एक शानदार टॉप-थ्री है. लेकिन अगर टॉप-थ्री अपना सामान्य योगदान नहीं देते हैं, तो नीचे धोनी का खेलना महत्वपूर्ण हो जाता है, चाहे वह नंबर चार पर हो या पांच पर. बात डिफेंडिंग टोटल की हो या फिर टीम की जीत सुनिश्चित करने की, ये फिर उनकी बल्लेबाज़ी पर निर्भर करता है.’

हालांकि, एक विकल्प कप्तान विराट कोहली भी हो सकते हैं क्योंकि उन्होंने कुछ मौकों पर चौथे नंबर पर बल्लेबाजी की है. लेकिन कोहली पिछले आठ सालों से जिस तरह से तीसरे क्रम पर शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं, उसे देखते हुए नहीं लगता कि विश्व कप जैसे बड़े टूर्नामेंट में उन्हें तीसरे की जगह चौथे क्रम पर उतारने का जोखिम लिया जाएगा.

वैसे तो टीम में हर क्रम के बल्लेबाज का अपना एक महत्व होता है. लेकिन, पिछले विश्व कप टूर्नामेंट्स पर अगर नजर डालें तो भारतीय टीम का प्रदर्शन चौथे क्रम के बल्लेबाज के प्रदर्शन पर काफी निर्भर रहा है. भारत पहली बार जब 1983 में विश्व चैंपियन बना था, तब यशपाल शर्मा (तीन मैचों में 112 रन) और संदीप पाटिल (तीन मैचों में 87 रन) ने नंबर चार पर उपयोगी योगदान दिया था.

भारत जब 2011 में दूसरी बार विश्व चैंपियन बना तो विराट कोहली और युवराज सिंह ने बल्लेबाजी क्रम में नंबर चार पर अहम भूमिका निभायी थी. वर्तमान भारतीय कप्तान ने तब पांच मैचों में चौथे नंबर पर आकर एक शतक की मदद से 202 रन बनाये थे. युवराज ने भी इस क्रम पर दो मैचों में एक शतक की मदद से 171 रन बनाये थे.

भारत पिछले यानी 2015 के विश्व कप के सेमीफ़ाइनल में पहुंचा था. इस टूर्नामेंट में भी चौथे क्रम के बल्लेबाज ने अहम योगदान दिया था. अजिंक्य रहाणे सात मैचों में इस स्थान पर बल्लेबाजी के लिये उतरे जिसमें उन्होंने 208 रन बनाये. एक मैच में सुरेश रैना ने यह जिम्मेदारी संभाली और 74 रन की पारी खेली थी. 2003 के विश्वकप में भारत फाइनल में पहुंचा था, और तब मोहम्मद कैफ ने इस क्रम पर कुछ महत्वपूर्ण पारियां खेली थीं.

पिछले करीब चार सालों से भारत के स्पिन गेंदबाज उसकी मजबूती बनकर उभरे हैं, खासकर युजवेंद्र चहल और कुलदीप यादव. लेकिन, विश्वकप को लेकर भारत के लिए स्पिनर चिंता का सबब बनते दिखायी दे रहे हैं. इसकी पहली वजह इंग्लिश पिचे हैं, जो तेज गेंदबाजों के मुफीद मानी जाती हैं. बीते पांच सालों के आंकड़े देखें तो यहां एकदिवसीय मैचों में तेज गेंदबाजों की तूती बोली है. इन पांच वर्षों में इंग्लैंड में 65 वनडे मैच खेले गये जिनमें कुल 802 विकेट गेंदबाजों ने लिये. इनमें से 564 विकेट तेज गेंदबाजों ने और 238 विकेट स्पिनरों ने हासिल किए.

इसके अलावा भारत के लिए युजवेंद्र चहल और कुलदीप यादव दोनों ही अलग-अलग वजहों से चिंता का कारण बने हुए हैं. बीते साल ये दोनों वनडे सीरीज खेलने इंग्लैंड गए थे. तब कुलदीप का प्रदर्शन तो बेहतर रहा था लेकिन, चहल मात्र दो विकेट ही हासिल कर सके थे जो टीम मैनेजमेंट के लिए चिंतित करने वाला है.

इसके अलावा कुलदीप यादव जिनसे इंग्लैंड में अच्छा प्रदर्शन दोहराने की उम्मीद की जा रही है, वे इस समय बेहद खराब फॉर्म से जूझ रहे हैं. इस बार पूरे आईपीएल सीजन में कुलदीप यादव की गेंदबाजी बेदम नजर आई. नौ मैचों में वे केवल चार विकेट ही हासिल कर सके और उनका गेंदबाजी औसत 71.50 रहा. एक मैच में उन्होंने अपने चार ओवर के कोटे में 59 रन लुटवा दिए. ऐसे में विश्वकप में कुलदीप प्रदर्शन पर टीम मैनेजमेंट के साथ-साथ क्रिकेट प्रशंसकों की निगाहें भी लगी हुई हैं.

स्पिनरों की ऐसी स्थिति को देखते हुए ही कुछ क्रिकेट विश्लेषकों का मानना है कि विश्वकप में गेंदबाजी मोर्चे पर अधिकांश दारोमदार तेज गेंदबाजों पर ही रहने वाला है. इनके मुताबिक इसीलिए चयनकर्ताओं को जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद शमी और भुवनेश्वर कुमार के अलावा भी एक और विशेषज्ञ तेज गेंदबाज को चुनना चाहिए था, जो स्पिनरों के न चलने पर इंग्लैंड में भारतीय गेंदबाजी को धार दे सके.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *