प्रखर श्रीवास्तव
राना अयूब देश की एक जानी-मानी पत्रकार हैं… वो हमेशा से विवादों में रहती हैं लेकिन पहली बार मुझे उनके एक लेख से बेहद दुख पहुंचा है… ये लेख हाल ही में अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट में छपा है… इस लेख में उन्होने लिखा है कि भारत के मुसलमानों को 23 मई का डर सता रहा है कि क्योंकि मोदी वापस सत्ता में न आ जाएं, उन्होने ये भी कहा कि भारत में लोकतंत्र खतरे में है… राना अयूब के इस भारत को नीचा दिखाने वाले लेख में बताया गया है कि इस देश में मुस्लिम कितने भयभीत हैं, और आने वाले चुनाव परिणाम को लेकर कितने चिंतित हैं… इस लेख को हथियार बना कर पाकिस्तान के पत्रकार ट्विटर के ज़रिए हमारे देश और लोकतंत्र का मज़ाक बना रहे हैं…
इस लेख में सबसे आपत्तिजनक है इसके साथ छपा एक इलेस्ट्रेशन (चित्र), जिसमें राहुल गांधी को तो कुर्ते पायजामें में दिखाया गया है, लेकिन मोदी एक फौजी वर्दी वाले तानाशाह की तरह दिखाए गए हैं… और वो दोनों इस देश के दो टुकड़े करते दिख रहे हैं (ये चित्र आप कमेंट बॉक्स में देख सकते हैं)… अपनी इसी कपोल कल्पना को सही साबित करने के लिए राना अयूब ने लेख में कई “अजीबो गरीब” तर्क दिए हैं… आज मैं उस लेख मे छपे हर तर्क का जवाब देना चाहता हूं… शुरुआत अपने व्यक्तिगत अनुभव से करूंगा।
राना अयूब का तर्क – वो लिखती हैं कि एमएनसी में काम करने वाले उनके भाई को मुंबई में सिर्फ इसलिए फ्लैट छोड़ देना पड़ा क्योंकि उस पॉश बिल्डिंग में रहने वाले हिंदू पड़ोसी नहीं चाहते कि वहां कोई मुसलमान रहे।
राना अयूब को जवाब – राना अयूब जी, मैं भी दिल्ली एनसीआर की एक अच्छी-खासी सोसाइटी में रहता हूं… और मेरी सोसाइटी की RWA के अध्यक्ष एक मुसलमान हैं… मैंने खुद उन्हे वोट दिया था और आगे भी दूंगा, क्योंकि वो हमारी सोसाइटी के भले के लिए दिन रात सोचते हैं… वो भी आपके भाई की तरह एमएनसी में नौकरी करते हैं, और दिन भर दफ्तर में थकने के बाद अपना सारा समय सोसाइटी को देते हैं… शायद यही वजह है कि आज हमारा अपार्टमेंट पूरे इलाके में बेस्ट माना जाता है… इस अनुभव के आधार पर मैं ये दावे के साथ कह सकता हूं कि किसी भी पड़ोसी की इज़्ज़त उसके उसके धर्म से नहीं, उसके कर्म से तय होती है।
राना अयूब का तर्क – वो लिखती हैं कि 1993 के दंगों में उनके परिवार को हिंदू इलाका छोड़ कर मुस्लिम इलाके में बसना पड़ा था, लेकिन अब ‘नफरत’ सरकार की पॉलिसी बन चुकी है।
राना अयूब को जवाब – राना अयूब जी, 1992 और 93 के दंगों के दौरान मैं भोपाल में रहता था और वहां भी बेहद खूनी दंगा हुआ था… मुस्लिम इलाकों में रहने वाले मेरे भी कई जान-पहचान वालों को हिंदू इलाकों में शरण लेनी पड़ी थी। मैडम दंगे होते हैं तो ये सब होता है… चाहे वो उस तरफ हो या इस तरफ… पिसता सिर्फ मासूम है।
राना अयूब का तर्क – वो लिखती हैं कि मेरे कई मुस्लिम रिश्तेदार और दोस्त ये कहते हैं कि अगर मोदी फिर चुनाव जीत गए तो वो हिंदुस्तान छोड़ कर किसी “फ्रैंडली कंट्रीज़” में बस जाना चाहेंगे… वो अपने बच्चों को विदेश में पढ़ने के लिए भेज देंगे।
राना अयूब को जवाब – राना अयूब जी, ये बताइए आखिर इस देश के कितने मुसलमान विदेश में बसने का माद्दा रखते हैं ??? आज भी इस देश के ज्यादातर मुस्लिम अपने जीवन की बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने के लिए जूझ रहे हैं… और इसके लिए मोदी नहीं बल्कि वो सरकारें ज्यादा जिम्मेदार हैं जिन्होने साठ साल तक मुसलमानों के वोट तो लिए लेकिन उन्हे साठ पैसे की मदद तक नहीं पहुंचाई… और इसके लिए आप जैसे मुस्लिम बुद्धिजीवी भी अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते, क्योंकि आप जैसे लोगों ने अपने तबके में सिर्फ निगेटिविटी फैलाई है।
राना अयूब का तर्क – वो लिखती हैं कि इस चुनाव में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह विदेशी घुसपैठियों को निकालने की बात कर रहे हैं और उनका इशारा सिर्फ मुस्लिम घुसपैठियों की तरफ है।
राना अयूब को जवाब – मैडम, अगर कोई देश अपने यहां गैर कानूनी तौर से बसे विदेशियो को निकालना चाहता है तो इसमें क्या गलत है ??? अब आप ही बताइए अगर मैं धोखे से साउदी अरब में घुस जाऊं, तो वहां की सरकार मेरी आरती तो उतारेगी नहीं… जाहिर है मुझे बाहर फेंक दिया जाएगा… मतलब अब विदेशी घुसपैठियों को बाहर निकालना भी नफरत फैलाना हो गया ???
राना अयूब का तर्क – वो लिखती हैं कि इस देश में ज्यादातर मुसलमान दूसरे दर्जे के नागिरक की तरह जिंदगी जीते हैं क्योंकि इसके लिए उन्हे इस देश के नेताओं ने मजबूर किया है… 23 मई को अगर मोदी आएंगे तो ये नफरत और बढ़ जाएगी।
राना अयूब को जवाब – मैडम, पहली बात तो मुसलमान इस देश में दूसरे दर्जे का नागरिक नहीं है… उसे वो ही हक हासिल हैं जो मुझे हैं… और कई मायनों में तो उसे मुझ जैसे हिंदुओं से भी ज्यादा हक हासिल हैं… रही बात गरीबी और अशिक्षा की तो हिंदू धर्म में भी कई ऐसे लोग हैं जिन्हे भी दो वक्त की रोटी नसीब नहीं हैं… और जहां तक बात नफरत की है तो, भारत 2014 के पहले कोई शांति का टापू तो था नहीं… आजादी के साथ ही इस देश में दंगों और नफरत बीज पड़ गया था… समय मिले तो गुजरात दंगों के अलावा देश मे बाकी 70 साल में हुए दंगों का रिकॉर्ड निकाल कर देख लिजिएगा।
मैडम राना अयूब, मैं जानता हूं कि पिछले कुछ सालों में आपको कई बार सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया है… यकीन मानिए मेरा इरादा आपको ट्रोल करने का बिल्कुल नहीं है… मैं किसी भी तरह की ट्रोलिंग के खिलाफ हूं, खासकर किसी महिला को तो बिल्कुल ट्रोल नहीं किया जाना चाहिए… लेकिन मैं बस आपसे इतना ही कहना चाहता हूं कि ये देश जितना मेरा है, उतना ही आपका भी है… इस देश में मुसलमान पहले भी सुरक्षित थे और 23 मई के बाद भी सुरक्षित रहेंगें… चाहे कोई भी चुनाव जीते, कोई भी हारे… इस देश का लोकतंत्र अमर है, अमर रहेगा… आपका बहुत-बहुत धन्यवाद !!!
राना अयूब का परिचय
राना अयूब पहले तहलका मैगजीन में काम करती थीं… इसी दौरान उन्होने गुजरात दंगों और उसके बाद हुए पुलिस एनकाउंटर्स में मोदी की भूमिका पर एक सनसनीखेज़ इनवेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग की… ये और बात है कि उनकी इन रिपोर्टस को तहलका मैगजीन ने छापने से इनकार कर दिया था क्योंकि वो रिपोर्ट्स कंपलीट नहीं थी इसे लेकर तहलका मैगजीन और राना अयूब के बीच विवाद भी हुआ जो ऑन रिकॉर्ड है… खैर बाद में इन रिपोर्टस को राना अयूब ने एक किताब Gujarat Files की शक्ल दे दी और जो काफी विवादित किताब रही… अपने रिपोर्टिंग करियर में राना अयूब ने भगवा आतंकवाद की थ्योरी को सही साबित करने वाली कई ख़बरें ब्रेक कीं… उस दौर में पत्रकारिता जगत में ये सवाल बार-बार उठता था कि आखिर साध्वी प्रज्ञा या असीमानंद से जुड़ी हर निगेटिव ख़बर, जांच ऐजेंसी NIA से राना अयूब और आशीष खेतान (पूर्व पत्रकार और वर्तमान में AAP के नेता) को ही क्यों मिलती है ??? डॉ. प्रवीण तिवारी Praveen Tiwari ने भगवा आतंकवाद की थ्योरी को एक बहुत बड़ा षड्यंत्र बताने वाली अपनी किताब The Great Indian Conspiracy में तब की NIA और कुछ खास पत्रकारों की साँठ-गाँठ पर कई सवाल उठाए हैं।
(वरिष्ठ पत्रकार प्रखर श्रीवास्तव से फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)